NewsPRLive: भारत में उच्च शिक्षा की बदहाली के लिए जदयू प्रदेश प्रवक्ता व पूर्व विधान पार्षद प्रो. रणबीर नंदन ने मोदी सरकार को दोषी बताया है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार केंद्र की सत्ता में तो बड़े वादे कर के पहुंची थी लेकिन धरातल पर कुछ नहीं किया। उच्च शिक्षा को लगातार केंद्र सरकार की गलत नीतियों का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। न तो राज्यों में उच्च शिक्षा के लिए कोई मदद का मॉडल तैयार किया गया और न ही केंद्रीय स्तर पर कोई तैयारी हुई है।
प्रो. नंदन ने कहा कि 2022 में उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिए 40,828.35 करोड़ रुपये के बजट की घोषणा की गई है। लेकिन पिछले वित्तीय वर्ष 2021-22 में केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षा के बजट में कटौती कर दी थी। एक तरफ दूसरे देश अपनी शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए प्रयास करते हैं लेकिन दूसरी ओर मोदी सरकार शिक्षा के बजट में ही कटौती कर देती है।
उन्होंने कहा कि शिक्षकों की नियुक्ति का आसान मॉडल रखा ही नहीं गया है जिससे बहाली को लगातार टाला जा सके। पहले स्नातकोत्तर के अच्छे विद्यार्थियों को सीधे उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षक के तौर पर जोड़ दिया जाता था। लेकिन बाद में पीएचडी और नेट की बाध्यता ने शिक्षकों की बहाली को लंबी प्रक्रिया बना दिया है। पीजी पास करते ही शिक्षक के पद पर नियुक्ति शिक्षकों को छात्रों को अच्छे से जोड़ती थी। लेकिन रिसर्च में लगे छात्र शिक्षण व्यवस्था से दूर सिर्फ अपने रिसर्च पूरा करने में लग जाते हैं।
प्रो. नंदन ने कहा कि विश्व की टॉप यूनिवर्सिटीज और टेक इंस्टीट्यूट्स की रैंकिंग जारी करने वाली संस्था क्वाक्वेरेली साइमंड्स ने पिछले दिनों वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग जारी की थी। इसमें आईआईएससी बेंगलुरु, आईआईटी दिल्ली, आईआईटी मद्रास और आईआईटी मुंबई को शामिल किया गया है। लेकिन हकीकत ये है कि इन संस्थानों के निर्माण में मोदी सरकार की कोई भूमिका नहीं है। मोदी सरकार की उच्च शिक्षा में भूमिका ये है कि देशभर के सभी 45 केंद्रीय यूनिवर्सिटीज समेत उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों के कुल 11 हजार से भी अधिक पद खाली हैं। जिन उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों के पद खाली हैं, उनमें IIT और IIM जैसे प्रसिद्ध और बेहतरीन शिक्षा संस्थान भी शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि 45 केंद्रीय यूनिवर्सिटीज में 18,956 स्वीकृत पद हैं। इनमें से प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के कुल 6180 पद खाली हैं। वहीं यदि देश के IIT यानी कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की बात की जाए तो यहां कुल 11,170 स्वीकृत पद हैं। इनमें से 4,502 पद खाली हैं। इसी तरह भारत के प्रबंधन संबंधी शीर्ष शिक्षण संस्थानों यानी IIM में शिक्षकों के 1,566 पदों में से 493 पद खाली हैं।
प्रो. नंदन ने कहा कि एक ओर शिक्षकों के खाली पद हैं तो दूसरी ओर केंद्र सरकार की खोखली नीति। हर राज्य परेशान है। बिहार के बारे में बात करें तो यहां के छात्रों को तो मोदी सरकार ने सिर्फ ठगा है। न राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देते हैं, न ही पटना विवि को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देते हैं और न ही बिहार में उच्च शिक्षा की बेहतरी के लिए किसी सकारात्मक कार्यक्रम में सहयोग करते हैं। बिना रोडमैप और बिना सोच की मोदी सरकार न सिर्फ शिक्षण संस्थानों को बरबाद कर रही है बल्कि देश के युवाओं के भविष्य को अंधकार में झोंक रही है।