औरंगाबाद मे पिछले 42 वर्षों से लंबित पड़ी औरंगाबाद बिहटा रेलवे लाइन परियोजना के पूरे नही होने और सरकार की उदासीन रवैए से क्षुब्ध नागरिकों ने रेलवे संघर्ष समिति के बैनर तले गुरुवार से पदयात्रा की शुरुआत समाहरणालय के मुख्यद्वार से शुरू की। यह पदयात्रा सात दिनों तक चलकर हाजीपुर पहुंचेगी और परियोजना के निर्माण से संबंधित मांगों को रेलवे अधिकारियों के बीच रखेगी और अविलंब कारवाई शुरु कराने की पहल करेगी।पदयात्रा का नेतृत्व कर रहे समिति के अध्यक्ष मनोज कुमार यादव ने बताया कि यह परियोजना पिछले 42 वर्षों से अधर में लटकी हुई है।जबकि लगातार इसको लेकर मांग की जा रही है। परंतु औरंगाबाद के जनप्रतिनिधि और सरकार की उदासीनता के कारण यह परियोजना अभी तक पूरी नहीं हुई और धर में लटकी हुई है। उन्होंने कहा कि वर्ष 1989 के 2 फरवरी को लोकसभा तथा राज्यसभा ने चंद्रदेव प्रसाद वर्मा ने मामले को रखा था। बीच में कई बार इसको लेकर सुगबुगाहट हुई परंतु राजनीतिक उदासीनता के कारण यह आज तक पूरी नहीं हो सकी। परियोजना को शुरू कराने के लिए वर्ष 2015 में भी पदयात्रा की गई थी और इसको लेकर नई दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन की गई तब मजबूर होकर के 1225 करोड रुपए की स्वीकृति दी। परंतु मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सारा पैसा अपने क्षेत्र में रेलवे लाइन के विस्तार मे लगा दिया। उन्होंने कहा कि उसमें से महज 50 करोड़ परियोजना के लिए सौंपा गया। जबकि 20 करोड़ और 25 करोड़ आवंटित किया जा चुका है।यानी की इस परियोजना के निर्माण के लिए कुल 95 करोड़ है। लेकिन वह भी केंद्र सरकार के कंस्ट्रक्शन आर्डर नहीं दिए जाने के कारण लंबित है। उन्होंने बताया कि बिहार ने केंद्र को 3-3 रेल मंत्री दिया और जितने भी रेल मंत्री बने सबने अपने-अपने क्षेत्र में रेल परियोजना का विस्तार किया। बिहार के अरवल पाली और औरंगाबाद को इस परियोजना के लाभ से वंचित रखा।
उन्होंने कहा कि अरवल बिहार का ऐसा जिला है जो रेलवे के मानचित्र पर कही नही है।उन्होंने कहा कि इस पदयात्रा से सूरत बदलने की कोशिश की जाएगी। लेकिन दुख इस बात का है कि आज देश आजादी का 75 वां वर्षगांठ मना रहा है और अमृत महोत्सव के तहत कई कार्य किए गए। परंतु औरंगाबाद बिहटा रेलवे परियोजना को लेकर कोई काम नही हुए जो राजनीतिक उदासीनता एवं अकर्मण्यता को प्रदर्शित कर रही है।