सांसारिक दुर्गुणों को छोडकर धर्म मार्ग का अनुसरण करने वाला जीव हीं भगवत्प्राप्ति करता है।

Patna Desk

 

मानव के जीवन में अहर्निश सुख दुःख लगा रहता है। तथापि हर मनुष्य केवल और केवल सुख कि कामना करता है । परन्तु सांसारिक दुर्गुणों को छोडकर धर्म मार्ग का अनुसरण करने वाला जीव हीं भगवत्प्राप्ति करता है । उक्त बातें वृंदावन,वाराणसी से पधार भागवत्मणी पं० विश्वकान्ताचार्यजी महाराज ने रोहतास जिले के निसीजाँ गाँव में बृहद रूप से प्रवाहित हो रही श्रीमद्भागवत्कथा के अंतर्गत कही । कथा के प्रथम दिवस में भागवत्माहात्म के अंतर्गत महाराज श्री ने भक्ति, ज्ञान, वैराग्य के प्रसंगों को बडे हीं मार्मिक ढंग से श्रोताओं के मध्य वर्णन किया ।नारद भक्ति के प्रसंग से ऐसा प्रतीत होता है कि चाहे जो कोई भी यदि सात्विक संकल्प लेकर प्रभु को कलिकाल में पाना चाहे।

तो अवश्य ही श्रीहरी उसके उपर कृपा करते हैं। यही कारण था कि सनक सनातन सनंदन सनत्कुमार के द्वारा नारद जी वृद्धावस्था को प्राप्त हो चुकी भक्ति महरानी को ज्ञान वैराग्य के साथ जन जन मे स्थापित कर दिए । कथा के मुख्य यजमान श्री रामेश्वर उपाध्याय जी बडे हीं श्रद्धा से कथा श्रवण कर रहे थे । संगीतमयकथा में तबले पर पप्पशुक्ला जी, आर्गन पर प्रमोद पांगे जी,पैड पर शशितिवारी जी साथ दे रहे थे । तथा काशी से पधारे वैदिक विद्वान उमेश पांडे जी के द्वारा वेदोक्त ढंग से कर्मकांड सम्पादित किया जा रहा है ।

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