विश्व का धरोहर वैभवशाली विक्रमशीला विश्विद्यालय का कब होगा जीर्णोद्धार, तारणहार की बाट जोह रहा विक्रमशीला।

Patna Desk

 

भागलपुर मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर कहलगांव अनुमंडल अंतर्गत अंतीचक गांव में विक्रमशिला विश्वविद्यालय स्थापित है। इसकी स्थापना आठवीं शताब्दी में पाल वंश के राजा धर्मपाल ने की थी। बताया जाता है कि स्थापना के 400 वर्ष बाद 1203 ईस्वी में इसे बख्तियार खिलजी नामक मुस्लिम आक्रमणकारी ने ध्वस्त कर दिया था, भव्य पुस्तकालय में आग लगा दी गई थी जिसके बाद यह विश्वविद्यालय खंडहरों के रूप में परिणत हो गया। विक्रमशिला विश्वविद्यालय के प्रबंधन के द्वारा ही नालंदा विश्वविद्यालय के कार्यभार को संभाला जाता था। यहां पढ़ने के लिए कठिन प्रवेश परीक्षा से गुजरना पड़ता था ,यहां 100 शिक्षकों की व्यवस्था थी जो 1000 विद्यार्थियों को पढ़ाते थे। अतीश दीपंकर यहां के उपाध्याय थे जो प्रकांड पंडित थे। शिक्षा की बात करें तो यहां दर्शन, तंत्र , न्याय , बौद्ध धर्म और व्याकरण की शिक्षा दी जाती थी, विदेशों से भी लोग शिक्षा के लिए यहां पहुंचते थे। 100 एकड़ में फैले विश्वविद्यालय में 160 विहार थे जिनमें कई विशाल प्रकोष्ठ बने हुए थे। यहां के विद्वानों ने विश्व भर में भ्रमण कर बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया था। नालंदा की तरह यह महाविहार भी बौद्घ शिक्षण का अंतरराष्ट्रीय केंद्र रहा था। देश विदेश से सैलानी अभी भी खंडहर को देखने पहुंचते हैं। खंडहरों को जब आप देखेंगे दीवारों पर गढ़ी शिल्पकारियों को देखेंगे तो आपको इसकी भव्यता और गौरवशाली अतीत का अनुभव होगा।

केंद्र और राज्य सरकार ने पहले इस पर कभी ध्यान नहीं दिया 2014 में भागलपुर में चुनावी सभा में नरेंद्र मोदी ने यहां केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना का वादा किया था। इसके लिए राज्य सरकार से जमीन की रिपोर्ट मांगी गई थी। केंद्र की टीम जमीन का सर्वे करने पहुंची तो 200 एकड़ जमीन परशुरामचक और एकडरा मौजा में चिन्हित कर रिपोर्ट सौंप। फरवरी 2022 में दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के नए कुलपति प्रोफेसर कामेश्वर सिंह की अध्यक्षता में फिर जांच की गई जिसके बाद परशुरामचक मौजा की जमीन को खारिज कर दिया गया और 215 एकड़ जमीन मलकपुर और अंतीचक में चिन्हित किया लेकिन यहां 50 एससी एसटी के घर हैं लगभग पैंतीस सौ पेड़ है जिससे भू अर्जन में परेशानियां बताई गई। अब फिर यह मामला अधर में फस गया। केंद्र सरकार ने 500 करोड़ रुपये दे दिए हैं लेकिन जमीन नहीं मिल पाई है। विगत 8 वर्षों से इसकी स्थापना का दौर कागजों में हांफ रहा है।

विक्रमशिला निवासी गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय के गौरव को वापस लौटाने के लिए संसद में कई बार आवाज उठाई है। उन्होंने कहा कि विक्रमशिला का गौरव लौटेगा यहां खुदाई फिर शुरू होगी विक्रमशिला के धरोहर के बारे में बची हुई जानकारी मिलेगी। विक्रमशिला में टूरिस्ट कम आते हैं तो इसका कारण कनेक्टिविटी है। इसको लेकर विक्रमशिला कटरिया रेल लाइन को भारत सरकार ने अप्रूवल दिया है संभावना है कि अक्टूबर-नवंबर में प्रधानमंत्री यहां का दौरा करेंगे और इसका शिलान्यास करेंगे। केंद्र सरकार ने 500 करोड़ रुपये विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए दिया है राज्य सरकार ने जमीन नहीं दिया है लेकिन आज ना कल इसका निर्माण होगा।

बहरहाल भारत की सांस्कृतिक और शैक्षणिक महत्व को दर्शाती विश्वविख्यात विक्रमशिला विश्वविद्यालय के गौरव को लौटाने की आवश्यकता है। केंद्रीय विश्वविद्यालय के निर्माण से निश्चित ही इसका गौरव लौटाया जा सकता है।

Share This Article