गया, बिहार के गया जी की महता देश-विदेश तक है. गया जी को मोक्ष धाम के रूप में जाना जाता है. मोक्ष धाम की इस नगरी में ऐसे कई चीजें मिल जाएंगे, जो विस्मित करने वाले हैं. ऐसी ही एक बात करें, तो यहां सात पीढियों का खाता भी मिल जाता है. सरकारी रेकॉर्ड में भले ही सात पीढियों के आंकड़े दुर्लभ होते हों, लेकिन मोक्ष धाम गया जी में यह उपलब्ध है गया जी में ऐसे हजारों पिंडदानी आए हैं, जिनके सात पीडियों के भी खाते यहां मौजूद है. दो-तीन या चार पीढियों की बात आम है.
वैसे तो गया में सालों भर पिंडदानी आते हैं. पितरों के मोक्ष की कामना को लेकर पिंडदानियों के आने का सिलसिला सालों भर जारी रहता है, किंतु विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेले में पितरों के मोक्ष की कामना के लिए अत्यंत ही उपयुक्त होता है. ऐसे में देश और विदेशों से पिंडदानी यहां पितृपक्ष मेले में आते हैं. इस वर्ष पितृपक्ष मेला 28 सितंबर से शुरू हो रहा है. यह 14 अक्टूबर तक चलेगा. इसमें देश के तकरीबन सभी राज्यों से पिंडदानियों का आगमन होगा. यहां आने वाले पिंडदानियों के लिए एक बड़ा रेकॉर्ड भी मिल जाता है. यह रेकॉर्ड उनके पूर्वजों के बही खाता का होता है. ऐसे हजारों पिंडदानियों के बही खाते मिल जाएंगे, जो की 300 साल पुराना है और उनकी सातों पीढियों का जिक्र है. ऐसे में पिंडदानी आकर यहां अपने सातों पीढियों के बारे में बही खाते के माध्यम से जानकारी हासिल कर लेते हैं और यह उनके लिए अत्यंत ही प्रसन्नता और सुकून की बात होती है.
गया जी में गयापाल पंडा के पास 500 साल से भी पुराना बही खाता मौजूद है, जो की ताम्र पत्र और राजाओं के सनद के रूप में मौजूद है राजाओं के सिक्के के रूप में भी यह वही खाते के तौर पर सहेज कर व्यापार पंडा समाज के द्वारा रखा गया है. यहां भोजपत्र में लिखे पिंडदारियों के पूर्वजों के भी खाते तो हैं ही, बल्कि यहां 500 साल से भी ज्यादा पुराने ताम्र पत्र भी मौजूद हैं. यानि कि ताम्रपत्र का भी बही खाता है. इसके अलावा राजाओं के सनद भी इनके पास मौजूद हैं. वहीं पहचान के तौर पर राजाओं के पीढियों के सिक्के भी मौजूद हैं. आज भी गयाजी में गयापाल पंडा के पास भोजपत्र-कागज के आंकड़े तो हैं ही, ताम्रपत्र और राजाओं के सनद भी मौजूद हैं.
जिनमें पूर्वज आ चुके हैं, नाम बताते ही सामने होता है पूरा खाका
जिन पिंडदानियों के पूर्वज पूर्व में गया जी को आ चुके हैं और पिंंडदान कर चुके हैं, उनका नाम बताते ही जानने की इचछा रखने वाले पिंडदानी के सामने अपने पूर्वज पिंडदानी का पूरा खाका सामने आ जाता है. हजारों कई तो ऐसे हैं, जिनकी सात पीढियां का पूरा रिकॉर्ड मिल जाएगा. यहां आम लोगों से लेकर राजा रजवाड़े के बही खाते भी उपलब्ध हैं. निश्चित तौर पर गया जी की यह परंपरा पूर्वजों के बही खाते को लेकर गया जी की एक सुखद तस्वीर पेश करती है.
देश के कोने-कोने से यानि तकरीबन हर राज्यों से तीर्थयात्री गया जी को आते हैं और पिंडदान पूर्वजों के निमित करते हैं. वहीं, गया जी आने के दौरान उन्हें अपने पंडा के बारे में जानकारी हासिल करना क्षेत्र वार पर निर्भर करता है. यहां जिला से लेकर राज्य स्तर तक तीर्थ यात्रियों का बंटवारा गया पाल पंडा समाज के बीच है. ऐसे में यदि कोई पिंडदानी आते हैं और बताते हैं कि उनके पूर्वजों के पंडा कौन थे, जिनके यहां उन्होंने श्राद्ध किया था, तो यह जिला राज्य के हिसाब से तुरंत पता चल जाता है. इसके बाद पीढ़ी के अनुसार पिंडदानी अपना पिंडदान का कर्मकांड संबंधित गयापाल पंडा के पास करते हैं. वहीं, ऐसे पिंडदानी अपने पीढियो- पूर्वजों के बारे में जानकारी चाहते हैं, तो वह भी उन्हें यहां मिल जाता है, कि उनके पूर्वजों ने यहां पिंडदान किया है.
अचल संपत्ति से भी लाख गुना ज्यादा महत्वपूर्ण है बही खाता
इस संबंध में गयापाल पंडा सह विष्णुपद प्रबंध कारिणी समिति के सदस्यों में से एक प्रेमनाथ टईया बताते हैं, कि एक पंडा समाज के लिए एक पैतृक धरोहर के रूप में बही खाता है, जिस प्रकार माता-पिता की अचल संपत्ति सुरक्षित रखते हैं, उससे कहीं लाख गुना ज्यादा महत्वपूर्ण यह बही खाता है. इसका महत्व सात पीढ़ी तक से जुड़ा होता है. गया जी को आने वाले तीर्थ यात्री सात पीढियों का नाम जानते ही प्रसन्न हो जाते हैं. आमतौर पर लोग दो-तीन पीढ़ी को ही जानते हैं, सात पीढ़ीयों को नहीं जानते. गया तीर्थ ही ऐसा तीर्थ है जहां धन से ज्यादा बही खाता को सुरक्षित रखा जाता है. बताते हैं कि यह मकान बनाने में लगने वाले पिलर के समान है. यही वजह है कि बही खाते को काफी सुरक्षित रखते हैं. यहां पिता, दादा परदादा, लकड़दादा का लेखा-जोखा मिल जाता है. 300 साल पुराना रेकॉर्ड यहां जरूर मिल जाता है और उसे सुरक्षित रखते हैं. पहले इसे भोजपत्र में सुरक्षित रखते थे. आज के कागज उस तरह के नहीं है और अब उसे सुरक्षित रखना एक बड़ी चुनौती के रूप में होती है. यही वजह है कि कागजों में लिखे जाने वाले बही खाते को कई सालों के बाद नया कर बदलते रहते हैं.
बताते हैं, कि गया जी में पितरों को 16 ऋणों से मुक्त करने के लिए आम लोगों से लेकर राजा रजवाड़े भी आते रहे हैं. यहां भोजपत्र कागज से लेकर ताम्र पत्र और राजाओं के सनद भी सुरक्षित हैं. 500 से अधिक वर्षों के सनद और ताम्रपत्र गयाजी में गयापाल पंडों के पास मिल जाएंगे. पहले राजा महाराजा अपनी ओर से पत्र (सनद)देते थे. वहीं, इस पत्र के अनुसार गयापाल पंडा के बीच भी जजमानी का क्षेत्र भी बंटा. यही वजह है, कि जजमान अपने क्षेत्र के हिसाब से गयापाल पंडा से संपर्क करते हैं. यह जिलावार क्षेत्र से संपर्क के बाद आसानी से उन्हें अपने पंडा के बारे में जानकारी मिल जाती है.
बताते हैं कि गया जी वह तीर्थ है, जहां देश-विदेश से नामचीन भी पिंडदान को आए. ऐसे में टिकारी महाराज गोपाल शरण, मकसूदपुर के राजा अजय सिंह, अमावा स्टेट के महाराज, चंद्रकांता निर्माता नीरजा गुलेरी, अमित शाह, के अलावे सिने अभिनेता रवीना टंडन, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी सहित बड़े शख्सियत यहां पिंडदान करने को आ चुके हैं. इसके अलावा गया जी में देश के राष्ट्रपति रहे ज्ञानी जैल सिंह, कस्तूरबा गांधी, मोरारजी देसाई, बूटा सिंह समेत बड़ी शख्सियत यहां पहुंच चुके हैं.
वहीं, लखनऊ से आए तीर्थ यात्री रघुवीर ने बताया कि वह अपने पितरों को मोक्ष दिलाने गया जी को पहुंचे हैं. उन्हें बड़ी खुशी हुई, जब उन्हें अपने कई पीढियों के बारे में जानकारी मिली. यह निश्चित तौर पर खुशी की बात है, ऐसा और कहीं देखने को नहीं मिलता है. गया जी ऐसा तीर्थ है, जहां ऐसी परंपरा में समाहित है. बताते हैं कि क्षेत्र के अनुसार संबंधित पंडा से संपर्क करने पर उन्हें जानकारी मिलती है और फिर उस पंडा समाज के पास हमारे पूर्वजों का भी बही खाता मिल जाता है.