पटनाः राजधानी पटना में भाजपा नेता RK सिन्हा ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि बिहार में अभी दलित राजनीति कुछ गर्मा सी गयी है। चिराग पासवान कुछ अलग सा कह रहे हैं। श्याम रजक ने अपना पाला बदल लिया है और जीतन राम मांझी पुनः नीतीश कुमार से हाथ मिलाने लगे है। चुनाव से पहले यह सब कुछ होता ही है। लेकिन, जनता को यह जानना जरूरी है कि आज तब बिहार में पूरे दलित समाज का कोई सर्वमान्य नेता तो रहा नहीं है।
वहीं उन्होंने कहा कि जब तक बाबू जगजीवन राम जी रहे तब तक कमोवेश यह बात कही भी जा सकती थी। लेकिन, वे भी जाटव समाज या चर्मकार समाज के ही मुख्य रूप से नेता थे लेकिन, उन्होंने अपने साथ सवर्णो को भी जोड़ा। रामविलास पासवान भी मुख्य रूप से पासवान के नेता हैं लेकिन, इन्होंने भी अपने समर्थकों में अन्य जातियों को भी जोड़ा है।
आरके सिन्हा ने आगे कहा कि बिहार के गांवों की स्थिति देखेंगे तो सबसे ज्यादा आबादी चर्मकारों की ही है। उसके बाद लगभग उतनी ही मुसहरों की है। इसके नेता जीतन राम मांझी हैं। उसके बाद पासवान हैं और उसके बाद पासी समाज है जो कि ताड़ के पेड़ पर चढ़ने और ताड़ के पत्तों की चटाई और टोकरी बनाने का काम करते हैं। बाकी रजक और अन्य दलित जातियां तो हर गाँव में मात्र एक-एक या दो-दो घर हैं।
यह बात तो समझना चाहिए कि दलितों के कल्याण के लिए सच्चे मन से जो आगे आयेगा उसी के साथ दलित समाज के लोग जुड़ेगे। क्योंकि, अब वे भी पढ़-लिख गये हैं। वे बेवकूफ नहीं हैं। वे शिक्षित हो गये हैं। शिक्षा सोचने समझने की शक्ति देता है। इसलिए कोई अपने को एकमात्र दलित का नेता सिद्ध करने की कोशिश करे, यह आज के माहौल में न तो बिहार में न उत्तर प्रदेश में यह कहीं भी उचित और व्यवहारिक नहीं है।