NEWSPR DESK- राजद के नेता तेजस्वी यादव के सभी चुनावी सभाओं में राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद को गरीबों के मसीहा बताये जाने पर भाजपा के प्रवक्ता प्रभाकर मिश्रा ने कहा कि तेजस्वी जी को यह बयान देने से पहले उस दौर के प्रदेश की हालत की भी जानकारी ले लेनी चाहिए थी। उन्होंने यह भी कहा कि कहने से कोई मसीहा नहीं बनता।
भाजपा मीडिया सेंटर में आज एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए श्री मिश्रा ने कहा कि तेजस्वी के माता, पिता के राज में बिहार के सभी निगमों के करीब 35 हजार कर्मचारियों के 9 साल तक वेतन बंद हो गया था, जिससे करीब 2.45 लाख लोगों के सामने भुखमरी की स्थिति आ गयी। इन कर्मचारियों के लिए सरकार को चिंता नहीं थी। दरअसल इन कर्मचारियों को सरकार वेतन देने में सक्षम नहीं थी।भुखमरी के कारण ये आत्मदाह कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि ऐसे ही एक युवक थे चंदन भट्टाचार्य जो 2002 में आत्महत्या कर ली थी। ये परितोष भट्टाचार्य के पुत्र थे और स्कूल का फीस नहीं भर पा रहे थे।
उन्होंने तेजस्वी से अपने माता – पिता के शासनकाल में बिहार की हालत पर जवाब मांगते हुए कहा कि
राजद राज में वेतन बंद होने से कर्मचारी क्यों आत्मदाह कर रहे थे, तेजस्वी को यह भी बताना चाहिए।
श्री मिश्रा ने कहा कि उस दौर में सरकार अपनी विश्वसनीयता खो चुकी थी। लोग शाम होते अपनी बेटियों को घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दिए थे। उद्योग के रूप में अपहरण उद्योग चल रहा था, जिसका मुख्यालय सीएम आवास हो गया था। उन्होंने कहा कि उस दौर को बिहार के लोगों ने झेला है। मुख्यमंत्री के परिवार के लोग फुटपाथ सहित अन्य दुकानदारों से हफ्ता वसूलते थे।
उन्होंने तेजस्वी से राजद के उस दौर की जानकारी लेने की सलाह देते हुए कहा कि पहले उस दौर का पता कर लें तब अपने पिता को गरीबों का मसीहा बताये।
उन्होंने कहा कि पति-पत्नी के शासनकाल में शाम गहराते ही सड़कों पर सन्नाटा पसर जाता था। लोग डर के मारे अपने घरों से नहीं निकलते थे। बिजली के खंभे थे, उसपर तार भी थे, पर उसमें बिजली नहीं थी। बिजली के तार कपड़े सुखाने के काम में आते थे। शिल्पी-गौतम हत्याकांड के बाद तो लोग लड़कियों को दिन में भी घर से बाहर नहीं भेजते थे। शिक्षित युवाओं के लिए को वैकेंसी नहीं थी। कुछ वैकेंसी आती थी, तो बहाली के लिए उसपर बोली लगती थी। जो सबसे अधिक बोली लगाता था, उसी को नौकरी मिलती थी। सड़कों का हाल ऐसा था कि पता नहीं लगता था कि सड़क में गड्ढा है या गड्ढे में सड़क है। अस्पताल आवारा पशुओं के आरामगाह बन गये। अस्पतालों के बेड पर आवारा कुत्ते आराम फरमाते थे।
श्री मिश्रा ने कहा कि उस दौर में स्कूल में न तो बच्चे थे और न गुरुजी। बेंच-डेस्क और कुर्सी भी नहीं थे। स्कूल भवन बारातियों के ठहरने और भूंसा रखने का काम आता था। उन्होंने कहा कि लालू-राबड़ी की सरकार कर्मचारियों की आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में हर तरह से विफल रही थी।
उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि अगर युवाओं से तेजस्वी को हमदर्दी है तो वे 26 साल में 53 बेशकीमती सम्पत्तियों के मालिक बनने का तरीका बता दें, सभी युवा उनकी तरह हो जाएंगे।