गया ज़िले के वजीरगंज प्रखंड के छोटे-से अमैठी गांव से निकली श्वेता भगत ने वह कर दिखाया है, जो पूरे समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है। कठिन परिस्थितियों और सीमित साधनों के बावजूद उन्होंने यूपीएससी परीक्षा पास कर गृह मंत्रालय के अधीन राजभाषा विभाग में अधिकारी का पद हासिल किया। दिसंबर 2024 में उनकी पहली पोस्टिंग इंदौर में हुई।
संघर्ष की पृष्ठभूमि
श्वेता का बचपन आर्थिक तंगी से जूझते हुए बीता। उनके पिता सुशील भगत गांव में खेती से परिवार का गुज़ारा नहीं कर पा रहे थे। मजबूरन उन्हें कोलकाता जाना पड़ा, जहां उन्होंने पान की दुकान खोली। मामूली आय के बावजूद उन्होंने यह ठान लिया कि बेटी की पढ़ाई कभी रुकेगी नहीं। किराए के मकान से शुरू हुआ सफर धीरे-धीरे एक छोटे से घर तक पहुँचा, लेकिन शिक्षा के प्रति पिता की प्रतिबद्धता कभी डगमगाई नहीं।
श्वेता खुद मानती हैं— “अगर मेरे पिता ने हिम्मत हार दी होती, तो मैं कभी इस मुकाम तक नहीं पहुँच पाती।”
शिक्षा और रुचि का सफर
श्वेता ने प्राथमिक से 12वीं तक की पढ़ाई कोलकाता के सरकारी स्कूलों से की। इसके बाद उन्होंने कोलकाता यूनिवर्सिटी से एम.ए. की डिग्री ली। इसी दौरान उन्हें अनुवाद और राजभाषा कार्य में गहरी रुचि विकसित हुई। 2023 में पहली बार यूपीएससी परीक्षा दी और उसी प्रयास में सफलता हासिल की।
गांव और समाज का गौरव
आज श्वेता गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग, इंदौर में कनिष्ठ अनुवाद अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। उनकी सफलता से न सिर्फ परिवार, बल्कि पूरा मालाकार समाज और अमैठी गांव गौरवान्वित है। गांव लौटने पर ग्रामीणों ने उनका जोरदार स्वागत किया और इसे पूरे समुदाय की जीत बताया।
संदेश
श्वेता कहती हैं— “मैं ऐसे परिवार से आती हूँ जिसे सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर समझा जाता है। लेकिन मेहनत और संघर्ष से यह साबित हो गया कि हालात चाहे कितने भी कठिन हों, सपनों की उड़ान रोकी नहीं जा सकती।”
उनकी जीवन कहानी इस सच्चाई का उदाहरण है कि पान की दुकान से भी सपनों की मंज़िल तय की जा सकती है।