समाज में अक्सर यह धारणा बनी रहती है कि अपराधियों का जीवन केवल सजा तक सीमित है, अवसर उनके हिस्से में नहीं आते। लेकिन बिहार की जेलों से निकली एक ताज़ा तस्वीर इस सोच को बदलती नज़र आ रही है।
सासाराम जेल से प्रेरणा की कहानी
सासाराम जेल में तीन बंदियों ने दसवीं की परीक्षा पास कर यह साबित कर दिया है कि गलतियों से भरा अतीत इंसान का भविष्य तय नहीं करता, बल्कि संकल्प और मेहनत ही असली पहचान बनाते हैं। जेल प्रशासन की ओर से इन कैदियों को पढ़ाई और परीक्षा का अवसर दिया गया, जिसका उन्होंने भरपूर लाभ उठाया। यही कारण है कि प्रशासन की भी खूब सराहना हो रही है।
बेऊर जेल में साक्षरता अभियान की सफलता
सिर्फ सासाराम ही नहीं, पटना के बेऊर केंद्रीय कारा में भी एक अनोखी पहल देखने को मिली। यहां आयोजित साक्षरता महाअभियान के तहत 965 बंदियों ने परीक्षा दी और लगभग सभी पास हो गए। इनमें 925 पुरुष और 40 महिलाएं शामिल थीं। इस अभियान के तहत निरक्षर बंदियों के लिए अलग वार्ड बनाए गए हैं और लक्ष्य है कि बेऊर जेल को पूरी तरह साक्षर बनाया जाए।
बदलाव की दिशा में बड़ा कदम
इन प्रयासों से यह संदेश साफ है कि हर इंसान में बदलाव की क्षमता छिपी होती है। सवाल यह नहीं है कि कैदी अतीत में क्या थे, बल्कि यह है कि समाज और व्यवस्था उन्हें भविष्य में क्या बनने का मौका देती है। जब कैदी किताबों से जुड़ते हैं और परीक्षाओं में सफल होते हैं, तो वे अपने अतीत की बेड़ियों को तोड़कर एक नई पहचान गढ़ते हैं।