राजनीति की सख्त और औपचारिक दुनिया में ऐसी घड़ियाँ बहुत कम दिखती हैं, जहाँ रिश्तों की गर्माहट खुलकर नजर आए। तस्वीर में निशांत पूरे गौरव और स्नेह के साथ अपने पिता को गले लगाए हुए हैं, और नीतीश कुमार भी उसी प्यार भरी मुस्कान के साथ बेटे को बाहों में समेटे हुए दिख रहे हैं। यह केवल जीत की खुशी नहीं, बल्कि वर्षों की मेहनत और संघर्ष के फल का जश्न भी है।
14 नवंबर को आए नतीजों ने बिहार की राजनीतिक तस्वीर को पूरी तरह बदल दिया
एनडीए ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 202 सीटें जीत लीं—एक ऐसा आंकड़ा जिसने विपक्ष को सकते में डाल दिया और राज्य की कमान एक बार फिर एनडीए के हाथों में सौंप दी।
इस चुनाव की सबसे बड़ी खबर रही JDU की अप्रत्याशित मजबूत वापसी
2020 के चुनाव में जहाँ पार्टी 43 सीटों पर सिमट गई थी, वहीं इस बार उसने धमाकेदार उछाल लेते हुए 85 सीटें अपने नाम कर लीं। नीतीश कुमार की रणनीति, संगठन की मेहनत और जमीनी समीकरणों की पकड़ ने इस नतीजे को संभव बनाया। शायद यही वजह है कि निशांत का अपने पिता को गले लगाना एक बेटे का गर्व भी है और एक सफल नेता को मिली सम्मान भरी बधाई भी।
भाजपा ने 89 सीटें हासिल करते हुए सबसे बड़ी पार्टी का स्थान पाया
चिराग पासवान की LJP (रा) को 19, उपेंद्र कुशवाहा की RLSP को 4 और जीतनराम मांझी की HAM को 5 सीटें मिलीं।
इसके विपरीत, महागठबंधन इस बार बेहद कमजोर प्रदर्शन करते हुए सिर्फ 35 सीटों तक सीमित रह गया।
नई सरकार के गठन को लेकर पटना से दिल्ली तक लगातार बैठकों का दौर चल रहा है।
लेकिन इन तमाम राजनीतिक हलचलों के बीच, नीतीश और निशांत का यह भावुक लम्हा इस चुनाव की सबसे मानवीय, सबसे दिल छू लेने वाली तस्वीर बनकर उभरा है—जहाँ जीत सिर्फ सत्ता की नहीं, बल्कि परिवार, संघर्ष और रिश्तों की भी है।