NEWSPR डेस्क। पटना, जेएनएन। जितनी तेजी से अपराधी वारदात को अंजाम देकर निकल जाते हैं, उतनी तेजी से पुलिस उनका पीछा नहीं कर पाती। यही वजह है कि गंभीर अपराध के मामले भी सालों तक यूंही दबे रहे जाते हैं। और इसी अवधि में गली का छोटा गुंडा बड़ा क्रिमिनल बन जाता है।
पटना जिले की पुलिस का मामला देखें तो यहां 1723 वारंटियों का पुलिस पता तक नहीं लगा पा रही है। पुलिस को पता नहीं कि ये वारंटी कहां और किस हाल में हैं। बगल के नालंदा जिले में भी पुलिस 561 वारंटियों को नहीं तलाश पा रही है। दोनों जिलों को मिलाकर कुल 2284 लोग हैं, जिनकी तलाश बिहार विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने से ठीक पहले की गई। पुलिस और उसके मुखबिर इनके बारे में कोई जानकारी हासिल नहीं कर सके। इनमें से कई चेहरे तो ऐसे हैं, जिनकी तलाश पुलिस को वर्षों से है।
विधानसभा चुनाव से पहले जोर पर रही धर-पकड़
विस चुनाव के दौरान पटना और नालंदा जिलों की पुलिस ने सभी थानों में लंबित वारंट मामले में सत्यापन और छापेमारी की कार्रवाई की। गिरफ्तारी भी हुई। लेकिन इनमें 2200 से अधिक ऐसे लोग हैं, जो सालों से फरार हैं। इसमें कई के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट है तो कुछ का सत्यापन करना था। पुलिस रिकॉर्ड में इनके खिलाफ वारंट तामिला के ये मामले लंबित ही रह गए हैं।
पटना में 3,922 और नालंदा में 1478 तामिला
पटना में 3922 और नालंदा 1478 तामिला मामलों में कार्रवाई हुई। इसमें नालंदा में 561 और पटना में 1723 मामले लंबित रह गए। जो वारंट तामिला लंबित रह गए, यह वैसे लोग हैं, जिन्हें संबंधित थाने की पुलिस नहीं खोज सकी। यहां तक कि सत्यापन करने के बाद भी इनका कोई सुराग नहीं मिला।
पुलिस का कहना है कि इनमें से कुछ तो लौटकर घर नहीं आए तो कुछ का ठिकाना बदल गया। अब यह लोग कहां गए, इसका जवाब भी पुलिस के पास नहीं है। इस वजह से जब भी थानेदारों की बैठक होती है तो लंबित वारंट की लिस्ट में बार-बार वहीं नाम होते हैं।
वोटल लिस्ट से नाम हटाने के लिए भेजा गया था प्रस्ताव
आइजी रेंज संजय सिंह का कहना है कि चुनाव के पहले पांच हजार लंबित वारंट के मामले थे। पुलिस ने इस मामले में कार्रवाई की। इसके बाद भी कई मामले लंबित हैं। यह वे मामले हैं, जो कई साल से लंबित हैं। सत्यापन के बाद इनका कोई सुराग नहीं मिला। ऐसे लोगों का वोटर लिस्ट से नाम हटाने के लिए प्रस्ताव भेजा गया था।