ऑक्सीजन प्लांट में 24 घंटे काम कर रहे स्टाफ, कोरोना मरीजों की सांसें चलती रहें

Sanjeev Shrivastava

NEWSPR DESK- राजधानी में काेरोना संक्रमण की स्थिति विकराल हो चुकी है। रोज 2000 से अधिक मरीज मिल रहे हैं। बड़ी संख्या में मौतें भी हो रही हैं। अस्पतालों में न बेड मिल रहा है और न ही ऑक्सीजन। जो लोग होम आइसोलेशन में हैं, उनके लिए ऑक्सीजन का इंतजाम बड़ा कठिन काम है।

कई गुनी कीमत देने पर भी बाजार में ऑक्सीजन सिलेंडर आसानी से नहीं मिल रहा है। अगर मिल रहा है तो उसमें क्षमता से कम ऑक्सीजन रहता है। कालाबाजारी चरम पर है। ऐसे में मरीजों के परिजन सिलेंडर लेकर रिफिलिंग कराने प्लांट में ही पहुंच जा रहे हैं। वहां घंटों लाइन में लगने के बाद सिलेंडर की रिफिलिंग हो पाती है।

अनलोड सिलेंडर बिलिंग करने के बाद फिलर के पास चले जाते हैं। अलग फिलिंग बे पर एक बार में 60 सिलेंडरों में ऑक्सीजन भरा जाता है। एक साथ 60 सिलेंडर को ऑक्सीजन से भरने में करीब 30 मिनट तक वक्त लगता है। फिर उन्हें हटा दूसरे सिलेंडर फिलिंग बे पर लाए जाते हैं।

सिलेंडर लेने आए अस्पताल के कर्मियों को सिलेंडर भरने, उनकी जांच, बिलिंग और अनलोडिंग और भरे सिलेंडर को वाहनों में लोड कर प्लांट से निकलने में करीब 4 घंटों का वक्त लग जाता है। प्लांट के प्रबंधक पीके सिन्हा खुद कोरोना पॉजिटिव होकर होम आइसोलेशन में हैं पर फ़ोन से लगातार सिलेंडर के उत्पादन और सप्लाई पर नजर रख रहे हैं। उन्होंने बताया कि 24 घंटों में 2200 सिलेंडरों का उप्तादन कर सप्लाई की जाती है।

पटना के ऑक्सीजन प्लांट प्रति दिन करीब 6 हजार सिलेंडर का उत्पादन कर रहे हैं। प्रशासन से रजिस्टर्ड 50 अस्पतालों के साथ अन्य करीब 20 अस्पताल कोरोना मरीजों के इलाज में जुटे हैं। छोटे-बड़े निजी अस्पतालों में प्रतिदिन औसत 5600 ऑक्सीजन सिलेंडर की आवश्यकता है। तीनों प्लांट्स के ऑक्सीजन सिलिंडर उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा सरकारी अस्पतालों को जा रहा है। निजी अस्पतालों को प्रशासन उनके बेड और मरीजों की संख्या के मुताबिक दिए जाने वाले सिलेंडर की संख्या तय कर रहा है।

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