NEWSPR डेस्क। कोरोना काल में इंसान फेंके हुए कफन तक को बेचने से परहेज नहीं कर रहा। इंसानियत को जमींदोज करके ऊंचे दामों पर रोटी से लेकर दवाएं तक बेची जा रही हैं, वहीं एक कुत्ते ने वफादारी की ऐसी मिसाल कायम की है, जिसे उन लोगों को तो जानने की बिल्कुल जरूरत है, जो इंसानियत को ताक पर रखकर आपदा में अवसर ढूंढने में लगे हुए हैं।
वफादारी की यह कहानी बिहार के गया जिले की है, जहां शेरू नाम का एक कुत्ता न सिर्फ अपनी मालकिन के अंतिम संस्कार में शामिल रहा बल्कि श्मशान घाट में जहां उसकी मालकिन की चिता जलाई गई, वहीं पर वह चार दिनों तक भूखा प्यासा रहकर उनके लौटने का इंतजार करता रहा। लोगों ने बताया कि मृतक महिला गली में ही घूमने वाले कुत्ते का पालन-पोषण करती थी, जिस वजह से दोनों में काफी लगाव हो गया था।
जानकारी के अनुसार एक मई को गया जिले के सत्संग नगर में रहने वाले भगवान ठठेरा की पत्नी की अचानक मौत हो गई। महिला के शव को शेरघाटी शहर के राम मंदिर घाट पर अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया। ऐसे में लोगों के पीछे-पीछे शेरू भी श्मशान घाट पहुंच गया, जहां उसने अपनी मालकिन का अंतिम संस्कार होते हुए देखा।
दाह संस्कार के बाद जब सभी लोग लौटने लगे तो शेरू वहीं बैठा रहा। लोगों ने सोचा कि थोड़ी देर में वह खुद लौट आएगा, लेकिन जब चार दिन बीत गए तब मृतक महिला के परिजनों ने उसकी खोज शुरू की। ऐसे में पता चला कि शेरू पिछले चार दिनों से श्मशान घाट में उसी स्थान पर भूखा-प्यासा बैठा है, जहां उसकी मालकिन का अंतिम संस्कार किया गया था।
लोगों ने बताया कि शेरू के विषय में जानकारी मिलने के बाद जब उसे वापस लाने की कोशिश की गई तो उसने गुस्से से भौंक-भौंक कर सभी को लौटने पर मजबूर कर दिया। जब उसे खाना खिलाने की कोशिश की गई तो उसने खाना भी नहीं खाया। लोगों ने बताया कि पांचवे दिन मृतक महिला के परिवार वाले आसपास के लोगों के साथ फिर से शेरू को खाना खिलाने पहुंचे, लेकिन तब वह उन्हें वहां पर कहीं नहीं दिखा।
मृतक महिला के परिजनों और स्थानीय लोगों ने बताया कि शेरू को मृतक महिला प्यार से न सिर्फ खाना खिलाती थीं बल्कि उसकी देखभाल भी करती थीं। शेरू हमेशा उनके घर के दरवाजे पर ही बैठा रहता था। उसे मालकिन से बहुत लाड-प्यार मिला। उनके मरने पर वह इतना दुखी हुआ कि चार दिनों तक श्मशान घाट पर अपनी मालकिन के लौटने का इंतजार करता रहा।