मजबूरी में इंसान हर वो कार्य करता है जिसे करने के लिए वह कभी नहीं सोचता है. जीवन में बहुत कम लोग ऐसे मिलते हैं जो आपकी मजबूरी समझते हो. दुनिया इतनी चालबाज हो गई है कि मजबूरी, मजबूरी कम और बहाना ज्यादा लगता है. इस लॉकडाउन में आपने सैकड़ों या हजार किलोमीटर से भी ज्यादा साइकिल चलाकर अपने घर पहुंचने की मजबूरी की कहानियां लॉकडाउन के दौरान सुनी होंगी.
इस बार भी कुछ ऐसी ही कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं. झारखंड के गोड्डा ज़िले में एक मजबूर पिता आज भी लॉकडाउन में अपने बच्चे को साइकिल पर बिठाकर 400 किलोमीटर तक पैडल चलाने को मजबूर है. मजबूर पिता को अपने 5 साल के बच्चे को साइकिल पर लेकर सैकड़ों किमी दूर इसलिए ले जाना पड़ रहा है, क्योंकि उसके गांव या शहर में ब्लड स्टॉक नहीं है और थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चे को हर महीने नियमित रूप से खून चढ़वाना होता है.
मेहरमा ब्लॉक के गांव से जामताड़ा के सदर अस्पताल तक आने जाने में करीब 400 किमी साइकिल चलाने वाले कांट्रेक्ट मज़दूर दिलीप यादव के मुताबिक पिछले कुछ ही महीनों में दूसरी बार उसे पैडल मारकर इतना सफर करना पड़ा. वजह यही थी कि जिले के ब्लड बैंक में ए निगेटिव खून नहीं था, जो उसे अपने बच्चे के लिए चाहिए होता है. इससे पहले दिल्ली में रहकर मजदूरी करने वाले यादव का कहना है कि दिल्ली में इस तरह की समस्या नहीं होती थी.
भागलपुर तक पैडल मार चुके यादव
तीन बेटियों और एक बेटे के पिता दिलीप यादव के मुताबिक लॉकडाउन में काम नहीं रहा, तो उन्होंने झारखंड अपने गांव लौटने का फैसला किया. लेकिन यहां थैलैसीमिया के इलाज में मुश्किलें आ रही हैं. दिलीप यादव की मानें तो उन्हें एक बार तो खून चढ़वाने के लिए ही बिहार के भागलपुर तक साइकिल चलाकर जाना पड़ा था. इस साल दूसरी बार उन्हें जामताड़ा तक जाना पड़ा.
इस कहानी से हैरान हैं जानकार
इस बारे में टाइम्स आफ इंडिया की विस्तृत रिपोर्ट में गोड्डा के ब्लड बैंक कर्मचारी के हवाले से कहा गया कि पूरे जिले में कोविड संक्रमण के चलते रक्तदान करने वाले लोग नहीं आ रहे हैं, जिसके चलते यहां स्टॉक खत्म हो रहा है. वहीं, गोड्डा के सिविल सर्जन एसपी मिश्रा ने यादव की कहानी पर हैरानी जताते हुए कहा ‘हमें पता नहीं था वरना हम व्यवस्था करते. अब भविष्य में किसी मरीज को इस तरह परेशान नहीं होना पड़ेगा.’ गोड्डा जिले में कुल 36 थैलैसीमिया मरीज हैं और इनके लिए रक्तदाताओं से आगे आने की अपील मिश्रा ने की है.
क्या होता है थैलैसीमिया?
थैलैसीमिया सामान्य तौर पर बच्चों को उनके माता-पिता से मिलने वाला आनुवांशिक रक्त रोग है. अगर सही तरीके से इसका इलाज नहीं हो तो बच्चे की मौत भी हो सकती है. थैलैसीमिया से बचाव के लिए बड़े पैमाने पर जनजागरूकता की जरूरत है. थैलेसीमिया की पहचान बच्चे में तीन महीने के बाद ही हो पाती है. इस बीमारी की वजह से बच्चों में रक्त की कमी होने लगती है. आमतौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में रेड ब्लड सेल्स की उम्र 120 दिन होती है, जबकि थैलेसीमिया से पीड़ित व्यक्ति के शरीर में मात्र 20 दिनों की हो जाती है.
थैलैसीमिया का क्या है उपचार?
थैलेसीमिया पीडि़त के इलाज में काफी मात्रा में रक्त और दवा की आवश्यकता होती है. इस कारण सभी इसका इलाज नहीं करवा पाते. इसके अलावा थैलेसीमिया का इलाज रोग की गंभीरता पर भी निर्भर करता है. कई बार थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों को एक महीने में दो से तीन बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है.