Entertainment Desk: अमिताभ बच्चन अक्सर कहते हैं कि हिंदी सिनेमा में अगर एक्टिंग का इतिहास लिखा जाएगा तो उसमें दो दौर होंगे. पहला दिलीप कुमार के पहले और दूसरा दिलीप साहब के बाद.
ट्रैजिडी किंग यानी दिलीप कुमार. यूं तो उनकी मशहूर फिल्मों की लंबी लिस्ट है, लेकिन जिस फिल्म को ‘हासिल-ए-महफिल’ कहा जा सकता है वो है ‘मुगल-ए-आज़म.’ फिल्म को बनने में दो दशक का वक्त लग गया. इस फल्म की एक एक सीन और डॉयलॉग फिल्म जगत के लिए एक बहुत ही बड़ी उपलब्धी है.
इन दिनों दिलीप कुमार को लेकर एक खबर सामने आ रही थी कि, उन्हें साँस लेने में कुछ तकलीफ़ के बाद अस्पताल में भर्ती करवाया गया था जिसके बाद सोशल मीडिया पर उनकी तबीयत बिगड़ने की अफ़वाहें चलने लगी थीं. लेकिन रविवार को दिलीप कुमार की पत्नी सायरा बानो ने एक ट्वीट के ज़रिये स्थिति स्पष्ट की. उन्होंने लिखा, “व्हॉट्सऐप पर शेयर हो रहीं अफ़वाहों पर विश्वास ना करें. साहब (दिलीप कुमार) ठीक हैं, उनकी तबीयत स्थिर है. दुआओं के लिए सभी का शुक्रिया. डॉक्टरों के मुताबिक़, वे 2-3 दिन में घर आ जायेंगे.”
इससे पहले उन्होंने लिखा था कि दिलीप साहब को रुटीन चेकअप के लिए एक ग़ैर-कोविड अस्पताल में भर्ती कराया गया है. पिछले कई दिनों से उन्हें साँस लेने में तकलीफ़ थी. डॉक्टर उनकी देखभाल कर रहे हैं. उनके लिए प्रार्थना करिये.
बतौर अभिनेता तो दिलीप कुमार से जुड़े क़िस्सों और घटनाओं की भरमार है, लेकिन एक्टिंग से परे भी उनकी ज़िंदगी से जुड़े कई किस्से है.
40 के दशक में फ़िल्मों में आने से पहले दिलीप कुमार पैसा कमाने का ज़रिया ढूँढ रहे थे. एक बार वो घर पर झगड़ा कर बॉम्बे से भागकर पुणे चले गए और ब्रिटिश आर्मी कैंटिन में काम करने लगे. कैंटिन में उनके बनाये सैंडविच काफ़ी मशहूर थे. ये आज़ादी से पहले का दौर था और देश में अंग्रेज़ों का राज था. दिलीप कुमार ने पुणे में एक दिन स्पीच दे डाली कि आज़ादी के लिए भारत की लड़ाई एकदम जायज़ है और ब्रितानी शासक ग़लत हैं.
अपनी क़िताब ‘दिलीप कुमार – द सब्सटांस एंड द शैडो’ में दिलीप कुमार लिखते हैं, “फिर क्या था, ब्रिटेन विरोधी भाषण के लिए मुझे येरवाड़ा जेल भेज दिया गया जहाँ कई सत्याग्रही बंद थे.”
“तब सत्याग्रहियों को गांधीवाले कहा जाता था. दूसरे क़ैदियों के समर्थन में मैं भी भूख हड़ताल पर बैठ गया. सुबह मेरे पहचान के एक मेजर आये तो मैं जेल से छूटा. मैं भी गांधीवाला बन गया था.”
वैसे तो दिलीप कुमार को ट्रैजेडी किंग कहा जाता है, लेकिन असली ज़िंदगी में वो अच्छे ख़ासे प्रैंक्सटर (शरारती इंसान) रहे हैं.
उनकी ऑटोबायोग्राफ़ी के फ़ॉरवर्ड में सायरा बानो लिखती हैं, “साहब कभी-कभी हेलेन के गाने ‘मोनिका ओ माई डार्लिंग’ पर उनकी हूबहू नकल करके डांस करते हैं… वैसे ही कपड़े पहनकर, वैसी ही अदाएँ, मैं तो हैरान रह गई थी.”
“वो कथक डांसर गोपी कृष्ण की भी नकल किया करते थे- वही मुश्किल नृत्य. एक बार तो सितारा देवी और गोपी जी भी उस समय मौजूद थे और वो लोग ख़ूब हँसे थे.”
वैसे अपने लड़कपन में दिलीप कुमार ख़ासे शर्मीले थे. उन दिनों दिलीप कुमार और राज कपूर, दोनों बॉम्बे में खालसा कॉलेज में पढ़ते थे.
दिलीप कुमार लिखते हैं कि राज कपूर दिखने में ख़ूबसूरत थे, कॉलेज में काफ़ी मशहूर थे, ख़ासकर लड़कियों में जबकि ख़ुद को वो औसत और शर्मीला मानते थे.
एक किस्से का ज़िक्र दिलीप कुमार ने यूँ किया है कि “राज कपूर ने ठान ली थी कि वो मेरा शर्मीलापन दूर करके रहेंगे. एक बार वो मुझे कोलाबा में सैर करने के बहाने ले गए. हमने टाँगे की सवारी की. अचानक राज ने टाँगेवाले को रोका. वहाँ दो पारसी लड़कियाँ खडी थी.”
“राज ने उनसे गुजराती में बातें की और कहा कि क्या हम आपको कहीं छोड़ सकते हैं. वो लड़कियाँ टाँगे पर चढ़ गईं. मेरी तो साँसे थमीं हुई थीं.”
“राज और वो लड़कियाँ हँस-हँसकर बातें कर रहे थे. एक लड़की मेरे बगल में बैठ गई. मेरी तो सिट्टी पिट्टी ग़ुम थी. दरअसल ये राज का तरीका था कि कैसे मैं औरतों के सामने असहज महसूस करना बंद करूं. ऐसे और भी कई किस्से हैं, लेकिन राज कभी अभद्रता नहीं करते थे. वो बस शैतान थे.”
दिलीप कुमार से जुड़े कई ऐसे किस्से है जो शायद ही आपको पता हो. जिसे आपको हम सेक्शन करके अपनी खबर के माध्यम से आपको बताएंगे.