87 साल से नहीं हुआ सर्वे, 1932 के खतियान से चल रहा है काम

Patna Desk

रांची प्रमंडल क्षेत्र में 87 साल से सर्वे नहीं हुआ है. जिसका खामियाजा रैयतों को भुगतना पड़ रहा है. यहां 1932 के सर्वे के आधार पर ही सारा काम चल रहा है. सर्वे नहीं होने के कारण लगातार भूमि विवाद के मामले सामने आ रहे हैं. सर्वे नहीं होने की वजह से जमीन का क्या नेचर है सही से पता नहीं चल पा रहा है. कौन सी जमीन खासमहाल है और कौन सी जमीन का नेचर काइमी है, इसकी जानकारी नहीं मिल पा रही है

 

प्रावधान के तहत हर 15 साल में सर्वे कराना होता है, लेकिन रांची में नया सर्वे 46 साल बाद यानी वर्ष 1975 में शुरू हुआ. 47 साल बीतने के बाद यह सर्वे आज तक पूरा नहीं हुआ है. नये सर्वे के आधार पर केवल लोहरदगा जिले के ग्रामीण इलाकों में नया खतियान फाइनल किया गया और 2006 में रैयतों को दिया गया. नया सर्वे नहीं होने का नतीजा यह है कि सरकारी या अन्य प्रयोजन के लिए वर्षों पहले जिस जमीन का अधिग्रहण हुआ है, उस जमीन का भी खतियान नहीं बदला है. जबकि सरकारी संस्थानों आदि को जमीन का हस्तांतरण और उसके एवज में मुआवजे का भुगतान भी हो गया है.

 

वर्षों पहले खरीदी गयी जमीन का नहीं मिल रहा खतियान

फिलहाल यह स्थिति है कि वर्षों पूर्व जमीन खरीदने पर भी रैयतों को उनका खतियान नहीं मिल रहा है. जमीन खरीद कर दूसरे को बेच दी गयी. फिर भी 1932 के सर्वे में जिसका नाम खतियान में चढ़ा हुआ है, उसके नाम का ही खतियान आज भी है. रैयतों के पास जमीन के सारे कागजात हो जाते हैं, लेकिन खतियान दूसरे का ही रह जाता है l

 

नये सिरे से सर्वे होता, तो होते ये फायदे

-खतियान अपडेट होता और जमीन के वास्तविक स्वरूप (खेती की है या आवासीय) की जानकारी मिल जाती.

-यह भी स्पष्ट हो जाता कि मौजूदा समय में उक्त जमीन पर सड़क, नहर, नाला, डैम या कुछ और है या नहीं.

-सरकार को नये सिरे से राजस्व मिलता और न्यायालय में चल रहे भूमि विवाद खत्म करने में मदद मिलती.

-गैरमजरुआ खास जमीन की समस्या से भी निजात मिलती और इससे जुड़े विवाद भी खत्म हो जाते.

-जिन रैयतों के खतियान आदि नष्ट हो गये हैं या गायब हैं, उनकी समस्या भी दूर हो जाती l

 

 

रिपोर्ट – वैभव

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