आज ही के दिन अंग्रेज वायसराय लॉर्ड कर्जन ने बंगाल के विभाजन की घोषणा की थी, 20 जुलाई को ही दिन था जब नील आर्मस्ट्रान्ग ने पहली बार चंद्रमा की सतह पर कदम रखा

Patna Desk

आज ही के दिन नील आर्मस्ट्रान्ग ने पहली बार चंद्रमा की सतह पर कदम रखा 

20 जुलाई को भारत और विश्व में कई घटनाये घाटी जो इतिहास के पन्नो में दर्ज हो गई। 20 जुलाई का ही दिन था जब नील आर्मस्ट्रान्ग ने पहली बार चंद्रमा की सतह पर कदम रखा। 16 जुलाई को अमेरिका के फ्लोरिडा प्रांत में स्थित जॉन एफ कैनेडी अंतरिक्ष केन्द्र से उड़ा नासा का अंतरिक्ष यान अपोलो-11 चार दिन का सफर पूरा कर 20 जुलाई 1969 को चांद पर लेकर पहुंचा। यह यान 21 घंटे 31 मिनट तक चंद्रमा की सतह पर रहा।

20 जुलाई को ही अंग्रेज वायसराय लॉर्ड कर्जन ने बंगाल के विभाजन की घोषणा की थी

आज ही के दिन 1905 में अंग्रेज वायसराय लॉर्ड कर्जन ने बंगाल के विभाजन की घोषणा की थी। इस घोषणा के करीब 3 महीने बाद 16 अक्टूबर 1905 को बंगाल का विभाजन हो गया। भारत की हिन्दू-मुस्लिम एकता को तोड़ने की ये अंग्रेजों की सबसे बड़ी साजिश थी।
दरअसल तब का बंगाल आज के पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम और बांग्लादेश से मिलकर बना था। क्षेत्रफल के लिहाज से ये इलाका फ्रांस जितना बड़ा था, लेकिन इसकी आबादी कई गुना ज्यादा थी। अंग्रेजों ने बंटवारे के पीछे इतने बड़े इलाके को संभालने में आ रही प्रशासनिक परेशानियों को वजह बताया और कहा कि ब्रिटिश सरकार को ऐसा मजबूरी में करना पड़ रहा है। विभाजन के बाद प्रशासनिक कामकाज बेहतर होगा, लेकिन भारतीयों को इस फैसले के पीछे छिपी साजिश समझ आ गई थी।

दरअसल बंगाल का पूर्वी हिस्सा मुस्लिम बहुल था, जबकि पश्चिमी हिस्से में हिंदुओं की आबादी ज्यादा थी। कर्जन ने मुस्लिम बाहुल्य पूर्वी बंगाल को असम के साथ मिलाकर अलग प्रांत बना दिया। इसका मुख्यालय ढाका बनाया गया। दूसरी तरफ बंगाल के बाकी हिस्से को पश्चिम बंगाल नाम दे दिया गया। कुल मिलाकर दोनों प्रांतों में दो अलग-अलग धर्मों को बहुसंख्यक बनाना अंग्रेजों का उद्देश्य था।
बंगाल उस समय राष्ट्रीय चेतना का केंद्र था। इसी चेतना को खत्म करने के लिए कर्जन बंगाल को बांटना चाहता था। भारतीय इस बात को समझ चुके थे कि ये अंग्रेजों की बांटो और राज करो वाली नीति है। लिहाजा इस फैसले का देशभर में विरोध होने लगा।

20 जुलाई 1944 को जर्मन तानाशाह एडॉल्फ हिटलर पर जानलेवा हमला हुआ था

20 जुलाई 1944 को जर्मन तानाशाह एडॉल्फ हिटलर पर जानलेवा हमला हुआ था। हालांकि इस हमले में हिटलर को मामूली चोटें आईं और वो बच गया। हिटलर पर ये हमला उसी की सेना के कर्नल क्लॉज वॉन स्टॉफनबर्ग ने किया था।
1943 में स्टॉफनबर्ग की पोस्टिंग ट्यूनीशिया में हुई थी। यहां पर एक हमले में स्टॉफनबर्ग को एक आंख और एक हाथ गंवाना पड़ा था। इसी दौरान स्टॉफनबर्ग एक संगठन के संपर्क में आए जिसका उद्देश्य हिटलर को मार गिराना था।

1944 में स्टॉफनबर्ग जर्मन रिप्लेसमेंट आर्मी के चीफ बनाए गए। अब वे आसानी से हिटलर से मिल सकते थे। उन्हें हिटलर की हत्या के लिए ये आसान मौका मिल चुका था। हिटलर ने पूर्वी प्रशिया के जंगलों में एक कमांड पोस्ट बनाया था। यहां हिटलर रोजाना मीटिंग करता था।

स्टॉफनबर्ग ने योजना बनाई कि इसी मीटिंग के दौरान हिटलर को एक विस्फोट में मार दिया जाएगा। इसके लिए उन्होंने एक सूटकेस में बम लगाया और इस सूटकेस को मीटिंग की जगह पर रख दिया। हिटलर की मीटिंग चल रही थी तभी ये बम फटा।

स्टॉफनबर्ग चाहते थे कि ये सूटकेस हिटलर के ज्यादा से ज्यादा नजदीक हो लेकिन बम फटने से ठीक पहले किसी ने सूटकेस को एक टेबल के नीचे रख दिया था। इस वजह से बम का असर कम हुआ। हालांकि हमले में चार लोग मारे गए थे, लेकिन हिटलर को मामूली चोटें आईं। बाद में स्टॉफनबर्ग और बाकी लोगों को पकड़ लिया गया और उनकी हत्या कर दी गई।

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