पटना: नियोजित शिक्षकों की बदहाली और शिक्षा व्यवस्था को लेकर प्लुरल्स की प्रेसिडेंट पुष्पम प्रिया चौधरी ने बिहार सरकार पर प्रहार किया है. उन्होंने एक लेख लिखकर सरकार को घेरा है . साथ ही बिहार सरकार से जवाब मांगा है की सरकार नियोजित शिक्षकों के मामले में असंवेदनशील रवैया क्यों अपना रही है?
दरअसल पुष्पम ने लिखा है “अक्सर जब मैं बिहार के शिक्षकों के अधिकारों के बारे में कुछ भी लिखती हूं, आप में से कई बहुत नाराज होते हुए नजर आते हैं. आपसे सोशल मीडिया पर बात करने की यही खूबसूरती है, यहां स्टेज पर खड़े होकर एक तरफा भाषण देने के विपरीत, हमारी बातचीत सम्भव हो पाती है. मैंने अपने अकादमिक तालीम से ये सीखा है कि समस्या का हल तभी होता है जब हम उसकी जड़ तक पहूंच पाएं. उसके बगर ना तो सही मायने में समस्या समझी जा सकती है और न ही समाधान सोचा जा सकता है. शिक्षा से मेरा बहुत ख़ास लगाव रहा है, सिर्फ़ इस वजह से नहीं कि मेरी ज़िंदगी में शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण रही है, इस वजह से भी नहीं कि मैं विश्व के जितने भी बहुत ही विनम्र विद्वानों से मिली हूं वो सब बहुत शिक्षित हैं, ना कि इस वजह से कि आज जितनी भी नीतियों या वैज्ञानिक अविष्कारों ने हमारी ज़िंदगी बेहतर बनाई है उन सबका आधार शिक्षा ही थी, बल्कि मूलतः इसलिए क्योंकि शिक्षा लेबर मार्केट और ह्यूमन कैपिटल के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जिसके बिना आर्थिक और सामाजिक विकास की कल्पना भी सम्भव नहीं है. शिक्षा हर इंसान की, चाहे उनमें कितनी भी भिन्नता हो, बुनियादी ज़रूरत है. मुझे पूरा विश्वास है कि आप सब मेरी इस बात से तो भली-भांति सहमत होंगे.”
शिक्षकों के समाज और उनके समाजशास्त्र को लेकर पुष्पम प्रिया चौधरी ने कहा कि “अब इस मुद्दे के सामाजिक पहलू को भी देखिए. शिक्षकों का परिवार भी हमारे समाज का ही हिस्सा है. अब उनके बारे में सभी पूर्वाग्रह को किनारे करके सोचते हैं. जब सरकार ने जिन भी नियमों के तहत बहाली की होगी और शिक्षकों को चुना होगा, शिक्षकों की ज़िंदगी बदली होगी, एक परिवार में ख़ुशी आयी होगी. नौकरी मिलने के बाद उन्होंने ख़ुद अपने परिवार की शुरुआत की होगी, आज उनके पति-पत्नी होंगे, बच्चे होंगे, शायद बूढ़े मां-बाप भी हों, बेरोजगार भाई-बहन भी हों, जिन सब की निर्भरता उस शिक्षक पर होगी जो हर दिन अपनी नौकरी और वेतन को लेकर सशंकित है. इतने लोगों की ज़िंदगी सरकार का एक तुग़लकी निर्देश-पत्र निर्धारित कर रहा होगा. तो इतनी जिंदगियों की क्या कोई कीमत नहीं होनी चाहिए? और फिर इस हारे मनोबल से क्या कोई शिक्षक हमारे बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाने में सक्षम होंगे?”
सरकार को घेरते हुए पुष्पम प्रिया चौधरी ने लिखा कि “बिहार का विकास भी तब सम्भव है जब शिक्षा बेहतर हो. इसका मतलब यह हुआ कि बिहार की शिक्षा से बिहार का समाज नियंत्रित होगा. निश्चय ही शिक्षा का रिफ़ॉर्म किसी भी सरकार की नीति का केंद्र होना चाहिए. पर अब सवाल आएगा कि उस रिफ़ॉर्म का लक्ष्य क्या होना चाहिए? लक्ष्य होगा – बेहतर लर्निंग परिणाम, क्वालिटी, प्रभाव और “स्टैंडर्ड्स”. और तब सकारात्मक बहस का विषय ये होगा कि इसे हासिल कैसे किया जाए? क्या शिक्षकों के बिना इसे हासिल करना सम्भव है? ज़ाहिर है हम सब इसके जवाब पर भी एकमत होंगे. नहीं, शिक्षकों के बग़ैर शिक्षा नीति का रिफ़ॉर्म सम्भव नहीं. तो अब बात बिहार के शिक्षकों की करते हैं. आप में से कई शिक्षकों के प्रति अपनी रुष्टता प्रकट करते है, कुछ तो उनकी क़ाबिलियत पर भी प्रश्न उठाते है. जब मैं शिक्षकों से मिली तो वे कई अलग-अलग बहालियों की चर्चा करते हैं, कुछ बहालियों को सही, कुछ को ग़लत बताते हैं. बिहार में शिक्षकों की बहाली अलग-अलग समय, अलग-अलग प्रकार से हुई है, पर क्या किसी भी बहाली के टैग के अंतर्गत सभी शिक्षकों की योग्यता पर फ़ब्ती कसना उचित है? बहाली तो सरकार ने ही की थी, उसमें शिक्षकों का क्या दोष है? शिक्षक हमारे ही बिहार से आने हैं, उनकी बहाली सरकार की ही ज़िम्मेदारी है, अगर हमें कुछ शिक्षकों की योग्यता से निराशा है तो ये भी सरकार की ही ज़िम्मेदारी है कि उन्हें हर साल ट्रेनिंग की सुविधा दें. और उन्हें सम्माजनक ज़िंदगी और वेतन दे जिससे उन्हें और प्रोत्साहन मिले.