नोबेल शांति पुरस्कार और भारत रत्न से सम्मानित ‘नेल्सन मंडेला’ की पुण्यतिथि, जेडीयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने किया नमन

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। रंगभेद नस्लभेद साम्राज्यवाद के खिलाफ आजीवन संघर्षरत रहे नोबेल शांति पुरस्कार और भारत रत्न से सम्मानित दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति ‘नेल्सन मंडेला’ की आज पुण्यतिथि है। इस मौके पर जेडीयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष सह प्रवक्ता संजीव श्रीवास्तव ने उन्हे सादर नमन करते हुए श्रद्धांजलि दी है। उन्होंने कहा कि सामाजिक अनैतिकताओं व रंगभेद के विरुद्ध नेल्सन मंडेला के संघर्ष ने मानव की गरिमा का संरक्षण किया। उनका कृतित्व समस्त देशवासियों के लिए प्रेरणा स्रोत है। शोषित और वंचित वर्गों के उत्थान व कल्याण के प्रति उनकी निस्वार्थ सेवाओं को विश्व अनंतकाल तक याद रखेगा।

आपको बता दें नेल्‍सन मंडेला को अफ्रीका का ‘गांधी’ कहा जाता है। दुनिया भर में शांति के दूत के रूप में प्रसिद्ध नेल्‍सन मंडेला का रंग भेद के खिलाफ लड़ाई में योगदान कोई भुला नहीं सकता। मंडेला गांधी की तरह ही अंहिसा के रास्ते पर चलने वाले व्यक्ति थे। मंडेला ने रंग भेद के खिलाफ लड़ते हुए 27 साल जेल में काटे थे। नेल्सन मंडेला का पूरा नाम नेल्सन रोलिह्लाला मंडेला था। उनका जन्म 18 जुलाई 1918 को दक्षिण अफ्रीका के केप प्रांत में उम्टाटा के म्वेजो गांव में हुआ था। मंडेला के पिता कस्बे के जनजातीय सरदार थे। हालांकि उनके पिता की मृत्यु 12 साल की उम्र में हो गई थी। पिता के मृत्यु के बाद नेल्सन ने वकालत की पढ़ाई करने की ठानी और अपनी जाति के सरदार के पद को त्याग दिया था। हालांकि वकालत खत्म होने से पहले ही उन्होंने राजनीति में कदम रख दिया था।

1944 में अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस में शामिल होने के बाद नेल्सन मंडेला ने रंगभेद के विरूद्ध आंदोलन छेड़ दिया. इसी वर्ष उन्होंने अपने मित्रों और सहयोगियों के साथ मिल कर अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस यूथ लीग की स्थापना की।1947 में वे लीग के सचिव चुने गये। 1961 में मंडेला और उनके कुछ मित्रों के विरुद्ध देशद्रोह का मुकदमा चला परन्तु उसमें उन्हें निर्दोष माना गया। 5 अगस्त 1962 को उन्हें मजदूरों को हड़ताल के लिए उकसाने और बिना अनुमति देश छोड़ने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर मुकदमा चलाया गया और 1964 में उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। 1964 से 1990 तक रंगभेद और अन्याय के खिलाफ लड़ाई के चलते उन्हें जेल में जीवन के 27 साल बिताने पड़े। उन्हें रॉबेन द्वीप के कारागार में रखा गया था जहां उन्हें कोयला खनिक का काम करना पड़ा था. इस दौरान उन्होंने गुप्त रूप से अपनी जीवनी लिखी। जेल में लिखी गई उनकी जीवनी 1994 में एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुई जिसका नाम ‘लॉन्ग वॉक टू फ्रीडम’ है।

27 साल कारागार में बिताने के बाद 11 फ़रवरी 1990 को उनकी रिहाई हुई. रिहाई के बाद समझौते और शान्ति की नीति द्वारा उन्होंने एक लोकतान्त्रिक एवं बहुजातीय अफ्रीका की नींव रखी। 1994 में दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद रहित चुनाव हुए। अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस ने 62 प्रतिशत मत प्राप्त किए और बहुमत के साथ उसकी सरकार बनी। 10 मई 1994 को मंडेला अपने देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने।

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