जेडीयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने गुरु तेग बहादुर को श्रद्धांजलि दी, शहीदी दिवस पर सिख गुरू के अनमोल विचारों को किया याद

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। आज पूरा देश सिख धर्म के नौवें गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस मना रहा है। इस अवसर पर जेडीयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने गुरु तेग बहादुर जी को श्रद्धांजलि दी और एक न्यायपूर्ण और समावेशी समाज के लिए सिख गुरु के सपने को याद किया। आपको बता दें गुरु तेग बहादुर सिख धर्म के दस गुरुओं में से नौवें थे। वे 17वीं शताब्दी (1621-1675) के दौरान रहे और प्रचार किया। वे दसवें गुरु, गोबिंद सिंह के पिता भी थे। गुरु के रूप में उनका कार्यकाल 1665 से 1675 तक रहा। गुरु तेग बहादुर ने मुगल साम्राज्य के अन्याय के लिए आवाज उठाई थी और निर्दोष नागरिकों के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। उन्होंने अपने अनुयायियों के विश्वास और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया था। उन्होंने अपनी भारत यात्रा के दौरान पूरा उत्तर भारत और पूर्वी भारत का भ्रमण किया था।

सिखों के नौवें गुरू तेग बहादुर सदैव सिख धर्म मानने वाले और सच्चाई की राह पर चलने वाले लोगों के बीच रहा करते थे, जिन्होंने न केवल धर्म की रक्षा की बल्कि देश में धार्मिक आजादी का मार्ग भी प्रशस्त किया। सिखों के 8वें गुरू हरिकृष्ण राय की अकाल मृत्यु हो जाने के बाद तेग बहादुर को नौवां गुरू बनाया गया था, जिनके जीवन का प्रथम दर्शन ही यही था कि धर्म का मार्ग सत्य और विजय का मार्ग है। 1 अप्रैल 1621 को माता नानकी की कोख से जन्मे तेग बहादुर ने धर्म और आदर्शों की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। 14 वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने अपने पिता के साथ मुगलों के हमले के खिलाफ हुए युद्ध में वीरता का परिचय दिया था और उनकी इस वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने ही उनका नाम ‘तेग बहादुर’ अर्थात् तलवार का धनी रखा था।

गुरू तेग बहादुर ने हिन्दुओं तथा कश्मीरी पंडितों की मदद कर उनके धर्म की रक्षा करते हुए अपने प्राण गंवाए थे। क्रूर मुगल शासक औरंगजेब ने उन्हें हिन्दुओं की मदद करने और इस्लाम नहीं अपनाने के कारण मौत की सजा सुनाई थी- उनका सिर कलम करा दिया था। उस आततायी और धर्मांध मुगल शासक की धर्म विरोधी तथा वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरूद्ध गुरू तेग बहादुर का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी।

 

 

 

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