NEWSPR डेस्क। होली का त्योहार देशभर में प्रसिद्ध है। ये एक ऐसा पर्व है जिसका इंतजार हर किसी को रहता हैं। ये त्योहार हर साल चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को पड़ता है। होली से पूर्व रात को होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन का दिन भक्तों को प्रह्लाद और होलिका की याद दिलाता है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद को हिरण्यकश्यप ने होलिका की गोद में बैठाकर जिंदा जलाने की कोशिश की थी. और इस दौरान होलिका खुद ही जल कर खत्म हो गई थी। उस दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा थी। तभी से होलिका दहन किया जाता है। इस तरह होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन के समय भद्रा का साया नहीं होनी चाहिए।
होलिका दहन इस साल गुरुवार, 17 मार्च 2022 को किया जाएगा। होलिका दहन की पूजा का शुभ मुहूर्त 9 बजकर 20 मिनट से 10 बजकर 31 मिनट तक रहेगा। ऐसे में लोगों को होलिका दहन की पूजा के लिए लगभग एक घंटे का ही समय मिलेगा। होलिका दहन पूर्णिमा तिथि में सूर्यास्त के बाद करना चाहिए लेकिन अगर इस बीच भद्राकाल हो तो होलिका दहन नहीं करना चाहिए। भद्राकाल समाप्त होने के बाद ही होलिका दहन करना चाहिए। हिंदू शास्त्रों में भद्राकाल को अशुभ माना गया है। ऐसी मान्यता है कि भद्राकाल में किया गया कोई भी काम सफल नहीं होता और उसके अशुभ परिणाम मिलते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल होलिका दहन के दिन काफी खास योग बन रहे हैं। इन योगों का असर जातकों को ऊपर अच्छा होगा। इस दिन अभिजीत, अमृत सिद्धि, सर्वार्थ सिद्धि और धुव्र योग आदि योग बन रहे हैं।
होलिका दहन से पहले होलिका माई की पूजा करने का विधान है। होलिका दहन के दिन सूर्योदय के समय सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके बाद होलिका दहन वाले स्थान पर जाएं। इसके बाद पूरब या फिर उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। सबसे पहले गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं बनाएं। इसके बाद हाथों को धोकर पूजा प्रारंभ करें। सबसे पहले जल अर्पित करें। इसके बाद रोली, अक्षत, फूल, हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, रंग, सात प्रकार के अनाज, गेहूं की बालियां, गन्ना,चना आदि एक-एक करके अर्पित कर दें, साथ ही भगवान नरसिंह की पूजा भी कर लें। होलिका पूजा के बाद कच्चा सूत से होलिका की 5 या 7 बार परिक्रमा करके बांध दें।