हिंदी की प्रमुख कवयित्री महादेवी वर्मा की जयंति आज, जदयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने किया नमन

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। हिंदी की प्रमुख कवयित्री,स्वतंत्रता सेनानी महादेवी वर्मा की आज जयंति है। इस मौके पर जदयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने नमन कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित किया। बता दें कि महादेवी वर्मा हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तम्भों में से एक महत्वपूर्ण स्तंभ मानी जाती हैं। उनके काव्य में उपस्थित विरह वेदना और भावनात्मक गहनता के चलते ही उन्हें आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है।

महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च, 1907 को फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था। महादेवी वर्मा के पिता गोविन्द प्रसाद वर्मा एक वकील थे और माता हेमरानी देवी थीं। महादेवी वर्मा के माता-पिता दोनों ही शिक्षा के अनन्य प्रेमी थे। महादेवी वर्मा ने जिस परिवार में जन्म लिया था उसमें कई पीढ़ियों से किसी कन्या का जन्म नहीं हुआ था इसलिए परिवार में महादेवी की हर बात को माना जाता था। महादेवी का विवाह अल्पायु में ही कर दिया गया, पर वह विवाह के इस बंधन को जीवनभर स्वीकार न कर सकीं। नौ वर्ष की यह अबोध बालिका जब ससुराल पहुंची और श्वसुर ने उसकी पढ़ाई पर बंदिश लगा दी तो उनके मन ने ससुराल और विवाह को त्याग दिया। विवाह के एक वर्ष बाद ही उनके श्वसुर का देहांत हो गया और तब उन्होंने पुन: शिक्षा प्राप्त की, पर दोबारा ससुराल नहीं गईं। उन्होंने अपने गद्य-लेखन द्वारा बालिकाओं, विवाहिताओं और बच्चों के प्रति समाज में हो रहे अन्याय के विरुद्ध जोरदार आवाज उठाकर उन्हें न्याय दिए जाने की मांग की।

1932 में इलाहाबाद  विश्वविद्यालय से एम.ए. करने के बाद से उनकी प्रसिद्धि का एक नया युग प्रारंभ हुआ. अपने प्रयत्नों से उन्होंने इलाहाबाद में प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की. इसकी वे प्रधानाचार्य एवं कुलपति भी रहीं. 1932 में उन्होंने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका ‘चांद’ का कार्यभार संभाला. 1934 में नीरजा तथा 1936 में सांध्यगीत नामक संग्रह प्रकाशित हुए।

सन 1955 में महादेवी जी ने इलाहाबाद में ‘साहित्यकार संसद’ की स्थापना की और पं. इला चंद्र जोशी के सहयोग से ‘साहित्यकार’ का संपादन सँभाला. यह इस संस्था का मुखपत्र था। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद 1952 में वे उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत की गईं। 1956 में भारत सरकार ने उनकी साहित्यिक सेवा के लिए ‘पद्म भूषण’ की उपाधि और 1969 में विक्रम विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट. की उपाधि से अलंकृत किया. इससे पूर्व महादेवी वर्मा को ‘नीरजा’ के लिए 1934 में ‘सक्सेरिया पुरस्कार’, 1942 में ‘स्मृति की रेखाओं’ के लिए ‘द्विवेदी पदक’ प्राप्त हुए।  1943 में उन्हें ‘मंगला प्रसाद पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया. ‘यामा’ नामक काव्य संकलन के लिए उन्हें भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ वर्ष 1983 में प्राप्त हुआ। इसी वर्ष उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार के ‘भारत भारती’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1988 में उन्हें ‘पद्म विभूषण’ से भी सम्मानित किया गया।

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