विकास सिंह
आराः कोरोना काल में जिंदगी की लड़ाई लड़ रहे कई कहानियां सामने आई है। जिनमें से कुछ दिल और दिमाग को पूरी तरह से झकझोर दे रहे हैं। बिहार से भी एक ऐसी ही कहानी सामने आई है। जहां कोरोना लॉकडाउन की मार झेलकर एक रिक्शा चालक ने जीवित रहते खुद को मुर्दा साबित कर दिया, ताकि लोग उसकी लाश पर कुछ पैसा दान कर सकें और इन पैसों से वह परिवार के लिए खाने का इंतजाम कर सके।
यह मामला बिहार के भोजपुर जिले के आरा का है। पटना के बिहटा निवासी रामदेव यहां रिक्शा चलाकर पैसे कमाता था। अब कोरोना काल में लोग घर से कम बाहर निकल रहे हैं। ऐसे में उसकी कमाई पूरी तरह से चौपट हो गई। परेशान रिक्शा चालक को जब कुछ नहीं सूझा तो उसने मरना मुनासिब समझा, यानि वह कफन लपेटकर डिस टैंक रोड़ पर लेट गया और नाटक असली लगे इसके लिए माला भी डाल ली, पास में अगरबत्ती जला ली।
मजबूरी या लोगों की संवेदना से खिलवाड़
अपनी ही मौत पर लोगों से पैसे जमा कराना लोगों की नजरों में भावना से खिलवाड़ करना हो सकता है। लेकिन आरा के रिक्शा चालक की स्थिती को देखकर ऐसा नहीं लगता है कि यह कहीं से भी गलत है। रिक्शा चालक रामदेव का कहना है कि मजबूरी में उसे यह तरीका अपनाना पड़ा है, वह एक मेहनतकश है और पसीना बहाकर पैसा कमाने पर विश्वास रखता है। लेकिन काम नहीं होने पर जब भुखमरी की हालत हुई तो उसने परिवार का पेट पालने के लिए यह रास्ता अपनाया।
यह घटना सरकार के गरीबों को राशन वितरण प्रणाली की पोल खोलती नजर आती है। ना जाने ऐसे कितने ही गरीब इस मुश्किल भरे वक्त में भोजन के लिए संघर्ष कर रहे होंगे। जिन पर किसी का ध्यान नहीं है।