NEWSPR डेस्क। इस साल वट सावित्रि का व्रत 30 मई को है। जिसे लेकर महिलाएं जोरों शोरों से तैयारी कर रही। कहा जाता है कि इस व्रत का खास महत्व है। महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और घर गृहस्थी की शांती के लिए इसे रखती है। मान्यता है कि सावित्री नामक पतिव्रता स्त्री ने यमराज से अपनी बुद्धि का उपयोग करते हुए अपने पति सत्यवान को पुनर्जीवित करवाया था। इसके अलावा इस दिन बहुओं द्वारा सास के पूजन का विधान है।
वट सावित्री पर सोमवती अमावस्या का शुभ संयोग है। इसलिए यह व्रतियों के लिए और भी खास हो गया है। इसमें सास को बायना देने की परंपरा पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार-झारखंड में है। इस दौरान बहू सास के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लेती हैं। उनको सुहाग की वस्तु दान करती हैं। इस दिन बड़ यानी कि बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। इसे सुहाग पिटारी या सौभाग्य पिटारी कहा जाता है।
इस सुहाग पिटारी में बहुएं बहुत सारी वस्तुओं भीगे हुए चने, पूरी, प्रसाद, फल, सिंदूर, सीसा, काजल, मेंहदी, चूड़ी, बिंदी, बिछिया, साड़ी आदि एक बांस की टोकरी या फिर किसी स्टील के डिब्ले में रखकर दी जाती है। अपनी क्षमता के अनुसर दक्षिणा देकर सास के पैर छूकर आशीर्वाद लिया जाता है। इसके अलावा धूप, दीप, घी, बांस का पंखा, लाल कलावा, सुहाग का सामान, कच्चा सूत, बरगद का फल, जल भरने के लिए कलश और थाल से इस व्रत में थाली सजाई जाती है।
व्रती महिलाएं सुबह स्नान करती। जिसके बाद साफ वस्त्र पहनती। सम्पूर्ण श्रृंगार करने के बाद पूजा-अर्चना करती हैं। महिलाएं बांस या फिर पीतल की टोकड़ी में पूजा का सारा सामान रखती। पूजा को करने की जरूरी विधि है। जिसमें सबसे पहले घर में पूजा करें। घर में पूजा के बाद भगवान सूर्य को लाल पुष्प के साथ तांबे के किसी पात्र से अर्घ्य दें। इसके बाद घर से नजदीक वट वृक्ष पर जाएँ। वट वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें। इसके बाद देवी सावित्री को वस्त्र और श्रृंगार का सामान अर्पित करें। वट वृक्ष को फल व पुष्प अर्पित करें। इसके बाद कुछ देर वट वृक्ष को पंखा झेलें। इसके बाद रोली से वट वृक्ष की परिक्रमा करें। परिक्रमा करने के बाद सत्यवान-सावित्री की कथा का पाठ करें। साथ ही पूरे दिन व्रत रखें।