द्रौपदी मुर्मू बनीं देश की 15वीं राष्ट्रपति, 121 विधायकों के क्रॉस वोटिंग का दावा, सहायक शिक्षक से लेकर प्रेसिडेंट तक का सफर किया तय..जानिए उनका सफर

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। भारत अपनी 15वीं राष्ट्रपति पाने की खुशी में जश्न मना रहा है। NDA से उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने जीत दर्ज की है। उन्होंने विपक्ष के यशवंत सिन्हा को मात दी है। ऐसा कहा जा रहा कि मुर्मू के पक्ष में 14 राज्यों के 121 विधायकों के क्रॉस वोटिंग की गई है। इसके साथ ही 17 सांसदों ने भी चुनाव में क्रॉस वोटिंग की है।

बता दें कि असम में छह फीसदी आबादी आदिवासी समाज की है। राज्य की कई सीटों पर आदिवासी समाज का प्रभाव है। लगातार दो टर्म से कांग्रेस यहां विपक्ष में है। विपक्ष के पास यहां 39 विधायक हैं। इसमें से 25 कांग्रेस के है, जबकि 22 विधायकों ने मुर्मू के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की है। इसके अलाना बिहार में 6, गोवा में 4, हिमाचल में 2, मेघालय में 7, अरुणाचल और हरियाणा में एक-एक विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की। सबसे पहले विपक्ष की ओर से यशवंत सिन्हा के नाम का ऐलान राष्ट्रपति प्रत्याशी के तौर पर किया गया था। बाद में भाजपा ने ट्रंप कार्ड के तौर पर द्रौपद्री मुर्मू का नाम घोषित किया। जिसके बाद उन्होंने जीत हासिल की।

2009 में टूटा था दुखों का पहाड़

मुर्मू का इतिहास बेहद ही शालीन पर दुखदायी रहा है। बात साल 2009 की है। द्रौपदी मुर्मू के एक बेटे की साल 2009 में असमय मौत हो गई थी। जिसका उनको काफी बड़ा सदमा लगा था। उन्होंने फिर सदमे से बाहर निकलने के लिए ब्र्हमाकुमारी संस्था के साथ जुड़ाव कर लिया। फिर दूसरा झटका साल 2013 में लगा। जब उन्होंने अपने दूसरे बेटों को एक सड़क हादसे में खो दिया। उनके बेटे की मौत के कुछ दिन बाद ही उनके भाई और माँ का भी स्वर्ग वास हो गया। फिर साल 2014 में उन्होंने उनके पति को भी खो दिया।

Z+ सुरक्षा प्राप्त

वो लगातार आगे बढ़ती रहीं और साल 2015 में झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बनी। बता दें कि मुर्मू को भारत सरकार के द्वारा Z+ सुरक्षा प्राप्त है। वहीं द्रौपदी मुर्मू ने भाजपा में रहते हुए कई प्रमुख भूमिकाएँ निभाईं है, उन्होंने एसटी मोर्चा पर राज्य अध्यक्ष और मयूरभान के भाजपा जिलाध्यक्ष के रूप में कार्य किया है। साल 2007 में मुर्मू को ओडिशा विधानसभा द्वारा वर्ष का सर्वश्रेष्ठ विधायक होने के लिए “नीलकंठ पुरस्कार” से सम्मानित किया गया था।

सहायक शिक्षक के रूप में अपनी शुरूआत की

वह ओडिशा की रहने वाली हैं। वह वहां की पहली महिला और आदिवासी नेता भी हैं, जिन्हें ओडिशा राज्य में राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था। द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयुरभंज जिले के बैदोपोसी गाँव में एक आदिवासी समुदाय में हुआ था। उन्होंने रायरंगपुर में श्री इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर में एक सहायक शिक्षक के रूप में अपनी शुरूआत की थी, इसके बाद उन्होंने सिंचाई और बिजली विभाग में ओडिशा सरकार के साथ काम किया। वह आदिवासी समाज की एक पढ़ी लिखी महिला है, जिसके कारण उनके ऊपर अपने समाज के प्रति कई जिम्मेदारियाँ थी। द्रौपदी मुर्मू ने अपना जीवन समाज की सेवा, गरीबों, दलितों तथा हाशिए पर खड़े लोगों को सशक्त बनाने के लिए समर्पित किया है। आज देश और न्यूज पीआर उनको राष्ट्रपति बनने के लिए शुभकामनाएं और बधाई देता है।

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