10 साल की उम्र में हुआ मुकदमा, ’43 साल तक तारीख पे तारीख’, 53 साल की उम्र में मिला इंसाफ

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। बक्सर ‘तारीख पे तारीख’ ये डायलॉग भले रील लाइफ में बोला गया हो। लेकिन बिहार के बक्सर जिले में ये डायलॉग रियल लाइफ में चर्चा का विषय बना हुआ है। घटना बक्सर जिले के डुमरांव थाने से जुड़ा है। जहां चौंगाई प्रखंड के रहने वाले श्याम बिहारी सिंह को 43 सालों बाद इंसाफ मिला है। डुमरांव के चौंगाई के रहने वाले श्याम बिहारी सिंह की उम्र 10 साल पांच महीने की थी। उसी वक्त सितंबर, 1979 में डुमरांव थाने में उनपर मुकदमा दर्ज हुआ। मामला 43 सालों तक चला। इस दौरान श्याम बिहारी सिंह 43 वर्षों तक कोर्ट की ‘तारीख पे तारीख’ को अटेंड करते रहे। अब जब वे उम्र के 53वें पड़ाव पर पहुंचे हैं। तब, कोर्ट ने उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया।

43 सालों तक इंसाफ की आस में कोर्ट जाने वाले श्याम बिहारी को आखिरकार न्याय मिल ही गया। श्याम बिहारी सिंह पर दुकान में मारपीट करने, गोली चलाने और हत्या के प्रयास की प्राथमिकी दर्ज की गई थी। उस समय श्याम बिहारी मात्र साढ़े दस साल के थे। पुलिस ने श्याम बिहारी सिंह को भीड़ में शामिल होने का अभियुक्त बनाते हुए मुकदमा दर्ज किया था। बक्सर कोर्ट में ये मुकदमा साल दर साल 43 वर्षों तक चला। चार दशकों तक श्याम बिहारी लगातार कोर्ट जाते रहे। मन में न्याय मिलने की उम्मीद हमेशा बरकरार रखी।

मंगलवार को श्याम बिहारी सिंह को खुशखबरी मिली। किशोर न्यास परिषद के जस्टिस डॉ. राजेश सिंह ने श्याम बिहारी को दोष सिद्ध नहीं होने की स्थिति में बाइज्जत बरी कर दिया। श्याम बिहारी सिंह ने वहां मौजूद पत्रकारों से कहा कि उन्हें कोर्ट पर पूरी तरह भरोसा था। उन्होंने कहा कि उन्हें ये लगता था कि देर हो रही है, लेकिन अंधेर नहीं है। देर सवेर उन्हें न्याय जरूर मिलेगा। उन्होंने कहा कि जिस आरोप से मैं खुद को मुक्त करने की गुहार लगा रहा था। कोर्ट ने उससे मुझे मुक्त कर दिया। मेरे जीवन का ये अनमोल क्षण है।

श्याम बिहारी सिंह को इंसाफ मिल गया है। उनके परिजनों में खुशी का माहौल है। वहीं दूसरी ओर ये घटना पूरे जिले में चर्चा का विषय बनी हुई है। स्थानीय लोगों का कहना है कि श्याम बिहारी सिंह के धैर्य को सलाम है। उन्होंने बिना किसी रुकावट के 43 सालों तक इंसाफ मिलने का इंतजार किया। साथ ही उनके विश्वास को भी दाद देनी पड़ेगी कि उन्होंने इस दौरान थाने में अथवा कहीं भी कोई पैरवी नहीं की। श्याम बिहारी सिंह इस विश्वास से भरे रहते थे कि उन्हें इंसाफ जरूर मिलेगा।

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