NEWSPR DESK- सुशील मोदी द्वारा बिहार सरकार द्वारा जेपी आंदोलनकारियों की पेंशन राशि की तुलना यूपी और मध्यप्रदेश से करने के बाद जदयू ने भी जवाब दिया है। जदयू के प्रदेश प्रवक्ता व पूर्व विधान पार्षद डॉ. रणबीर नंदन ने कहा कि सुशील मोदी निराश और हताश हैं। महीनों से मोदी-मोदी का जाप किए हुए हैं।
लेकिन कोई पूछ नहीं रहा है। राज्यसभा सांसद बनने भर से उन्हें चैन नहीं है। वे कुछ बड़ा चाहते हैं। इसी कारण उनका सिंगल प्वाइंट एजेंडा अपने आकाओं को खुश करना रह गया है। मोदी-मोदी के जाप से कुछ नहीं मिला तो अब जेपी आंदोलनकारियों की राजनीति करने से भी बाज नहीं आ रहे।
डॉ. नंदन ने कहा कि जेपी का सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन पूरे देश में चला लेकिन इसकी शुरुआत तो गुजरात में मानी जाती है। लगभग तीन दशक से वहां भाजपा की सरकार है। क्यों नहीं किसी ने सुध ली वहां के जेपी आंदोलनकारियों की? नरेंद्र मोदी पीएम बनने से पहले गुजरात के ही सीएम थे। क्या किया है नरेंद्र मोदी ने जेपी आंदोलनकारियों के लिए गुजरात में?
उन्होंने कहा कि आठ साल से केंद्र में भाजपा की ही सरकार है। क्या किया है आठ सालों में जेपी आंदोलन के आंदोलनकारियों और जेपी के सपनों के लिए। खुद को जेपी आंदोलनकारी बताने वाले भाजपा नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि जेपी का आंदोलन तानाशाही के खिलाफ था, जो अभी भाजपा की सरकार कर रही है।
डॉ. नंदन ने कहा कि जिस उत्तर प्रदेश के पेंशन की बात कर सुशील मोदी भाजपा की पीठ थपथपाना चाहते हैं, वो तो भाजपा सरकार ने शुरू ही नहीं की। 2016 में उ0प्र0 लोकतन्त्र सेनानी सम्मान अधिनियम के तहत जो प्रावधान हैं, वो अखिलेश यादव की सरकार ने शुरू किए थे। भाजपा के पास तो इसकी कोई योजना रही ही नहीं है। वर्ष 2015 में राज्यसभा में नारायण लाल पंचारिया द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में भाजपा सरकार की ओर से बेशर्मी से यह कहा गया था कि जेपी आंदोलनकारियों के लिए केंद्र सरकार की तरफ़ से पेन्शन योजना प्रारम्भ करने की कोई योजना नहीं है।
उन्होंने कहा कि बीजेपी अपने आप को जेपी के आदर्शों पर चलने वाली पार्टी मानती है और अगर जेपी आन्दोलन को केंद्र सरकार राष्ट्रव्यापी आन्दोलन मानती है तो केंद्र सरकार बताए कि उनके सम्मान के लिए केद्र सरकार ने अभी तक पेंशन की योजना क्यों नहीं चलायी? साथ ही सुशील मोदी को सुझाव देते हुए प्रो. नंदन ने कहा कि पद और अपने आकाओं के नजरों में बने रहने के प्रयास में जेपी आंदोलन की गरिमा याद रखें।