NEWSPR डेस्क। बिहार के भागलपुर जिले में सृजन घोटाले के बाद एक और घोटाला सामने आया है। इस घोटाले ने शिक्षा विभाग की नींद उड़ा दी है। घोटाला कॉलेज को मिलने वाली अनुदान राशि को लेकर हुआ है। एनबीटी की टीम ने इस पूरे घोटाले की पड़ताल की है। घोटाला जिले के नाथनगर में स्थित मौजीलाल झा इंटरमीडिएट कॉलेज से जुड़ा हुआ है। जहां कॉलेज कर्मियों को मिलने वाली अनुदान राशि के वितरण में धांधली हुई है। इसे लेकर कॉलेज कर्मियों में हाय-तौबा मची हुई है। यही नहीं कॉलेज के सेवानिवृत्त प्राध्यापक अमरेन्द्र पाठक से ही कॉलेज के बैंक खाता का संचालन और वित्तीय कार्य भी कराया जा रहा है।
कॉलेज के प्राचार्य कृष्णचंद्र मिश्र की मनमानी ऐसी है कि उन्होंने रिटायरमेंट के बाद भी अमरेंद्र पाठक का सेवा विस्तार करा दिया। साथ ही रिटायर कर्मचारी से ही बिना विभाग की स्वीकृति लिए वित्तीय मामलों के लिए संयुक्त हस्ताक्षर बनवा लिया। जिसे डीईओ संजय कुमार ने नियम के खिलाफ माना है। कॉलेज के शिक्षकों की शिकायत पर शिक्षा विभाग ने महाविद्यालय के बैंक खातों के संचालन पर फिलहाल रोक लगा दी है। डीईओ को अनुदान राशि वितरण में बंदरबांट की खबर भी मिली थी। उसके बाद शिक्षा विभाग की ओर से कड़ा फैसला लिया गया है। बताया जा रहा है कि राशि में बंदरबांट का ये खेल बहुत पहले से चला आ रहा है।
फिलहाल साढ़े चार लाख से ज्यादा का घोटाला सामने आया है। जांच के क्रम में डीईओ संजय कुमार ने पाया कि बिहार विद्यालय परीक्षा समिति पटना के विद्यालय / उच्च माध्यमिक विद्यालय/ +2 महाविद्यालय के कर्मियों की सेवा शर्त नियमावली 2019 की कंडिका 3(iv) की जमकर अवमानना हुई है। डीईओ संजय कुमार ने पिछले 12 अक्टूबर, 2022 को ही कॉलेज के प्राचार्य को पत्र भेजकर कॉलेज को मिली अनुदान राशि का विवरण मांगा था। तीन दिनों के अंदर सारे खर्च से संबंधित विवरण जमा करने के आदेश दिये थे। उसके बाद डीईओ ने प्राचार्य के खिलाफ कार्रवाई की बात कही थी।
शिक्षा विभाग के मुताबिक प्राचार्य कृष्णचंद्र मिश्र तय समय में साक्ष्य के साथ हिसाब – किताब देने में असफल रहे। उन्होंने चालाकी दिखाते हुए पिछले 14 अक्टूबर, 2022 को कॉलेज की ओर से डीईओ के नाम एक पत्र भेजकर बताया कि वे अभी अस्वस्थ हैं। प्राचार्य के इस जवाब के बाद डीईओ ने किसी अन्य शिक्षक को खाता संचालन का प्रभार दिये जाने की बात कही है। प्राचार्य ने मामले में सफाई देते हुए कहा है कि सभी विवरण उपलब्ध करा दिया गया है। कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। कॉलेज के शिक्ष असीम जफर ने बताया कि वर्तमान प्राचार्य महोदय ने नियम को ताक पर रखकर मनमानी की है। अपने आदमी से वित्तीय संचालन करवाते रहे। अनुदान राशि में बंदरबांट होती रही।
कॉलेज के क्लर्क सुबोध मंडल ने भी प्राचार्य पर कई आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि 21 अगस्त, 1988 को तत्कालीन शासी निकाय ने क्लर्क के पद पर उनका चयन किया था। लेकिन प्राचार्य ने उनको मिलने वाले अनुदान राशि में अड़ंगा लगाया। जबकि उनके बाद बहाल होने वाले कर्मियों को अनुदान राशि दी गई। प्राचार्य पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाने वालों कि कतार में यशोधर मिश्र भी हैं। उन्होंने कहा कि वह 1983 में बहाल हुए और 1985 में लैब टेक्नीशियन के पद पर बहाली कन्फर्म हुई। उन्होंने अमरेन्द्र पाठक की एमएससी डिग्री को ही फर्जी करार दे दिया है। वहीं दूसरी ओर जिला शिक्षा पदाधिकारी संजय कुमार ने कहा कि अनुदान राशि के वितरण के अलावा कॉलेज के सारे वित्तीय मामलों का लेखा – जोखा कॉलेज के अधिकारियों से मांगा जायेगा और इसकी निष्पक्ष जांच कराई जाएगी। दोषी पाये जाने पर कठोर कार्रवाई की जाएगी।