NEWSPR डेस्क। पटना ‘आप बिहार से हैं, क्या बिहार में रोजगार नहीं मिल रहा है?’ फिर महिला ने ना में जवाब दिया। उसके बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में अपने अधिकारियों को निर्देश दिए कि इनके लिए कुछ किया जाए। बिहार की राजनीति में बेरोजगारी और पलायन दो ऐसे मुद्दे हैं, जो सालों से चले आ रहे हैं। जब भी वोट लेने की बारी आती है तो सियासी नुमाइंदे बड़े-बड़े वादे करते हैं। 2020 विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने बड़ी-बड़ी बातें की थी। अब तो वो सरकार के हिस्सा हैं। नीतीश कुमार उनकी बातों को और आगे तक ले गए। सीधे 10 लाख को 20 लाख में बदल दिए। जब बात ही करनी है तो कम क्यों हो? अगर उसमें कुछ पूरा हो जाए तो फिर आगे बात करने के लिए भी तो बात होनी चाहिए।
तेजस्वी यादव ने 31 अक्टूबर 2020 को मोतिहारी के चुनावी सभा में कहा था कि हमारी सरकार बनने पर पहली प्राथमिकता पढ़ाई, दवाई, सिंचाई और कमाई होगी। राज्य के लोग इन्हीं चीजों को लेकर पलायन कर रहे हैं। सरकार बनते ही दस लाख युवाओं को रोजगार देने का काम करेंगे। समान काम के लिए समान वेतन देंगे। 2020 विधानसभा चुनाव को उन्होंने बेरोजगारी हटाओ अभियान कहा था। चुनाव के 10 महीने बाद उन्होंने खुद की बेरोजगारी दूर कर ली। नीतीश कुमार ने उनको डेप्युटी सीएम बना दिया।
बिहार में जब महागठबंधन की सरकार बनी तो नीतीश कुमार ने 15 अगस्त को पटना के गांधी मैदान में कहा कि 20 लाख लोगों को रोजगार देंगे। उन्होंने कहा है कि सरकार के अंदर और बाहर दोनों जगह नौकरी और रोजगार के इंतजाम करवाएंगे। तेजस्वी यादव ने 2020 चुनाव में 10 लाख सरकारी नौकरी देने का वादा किया था। ऐसा लगा चाचा-भतीजा मिलकर बिहार के बेरोजगारों का बेड़ा पार कर देंगे। अब किसी को रोजगार के लिए दर-दर भटकना नहीं पड़ेगा।
वैसे, बिहार लोग दूसरे राज्यों में जाकर मेहनत-मजदूरी कर पहले की तरह अब भी कमा-खा रहे हैं। जीवन-स्तर को बेहतर करने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। अब तक नीतीश कुमार से लोग अपनी समस्याओं और अधिकारियों की शिकायतें लेकर पहुंचते थे। नीतीश कुमार के जनता दरबार में काम मांगने लोग नहीं आते हैं। शायद जरूरत नहीं समझी हो या फिर भरोसा न रहा हो। काम मांगने के लिए एक महिला ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चुना। ऐसी बात नहीं कि बिहार में काम नहीं है। हो सकता है उसको अपनी सरकार पर भरोसा नहीं रहा हो। भरोसे पर ही तो लोग वोट देते हैं, अगर यहीं नहीं रहा तो फिर सोचनेवाली बात है।
हालांकि, मौजूदा सरकार का कहना है कि पिछले 17-18 साल के शासन में उन्होंने बिहार में ही लोगों को रोजगार देने के लिए कदम उठाए हैं। रोजगार निबंधन विभाग की ओर से जारी ताजा आंकड़े सरकार के दावों की सच्चाई बयां कर रही है। बिहार में रोजगार की डिमांड के लिए जिन लोगों ने निबंधन कार्यालय में रजिस्ट्रेशन कराया है, उसमें 73 फीसदी लोग निरक्षर हैं। इस आंकड़े से समझा जा सकता है कि बिहार में अगर थोड़ा भी पढ़ा-लिखा शख्स है तो उसे राज्य में ही रोजगार मिल जा रहे हैं या वो रोजी-रोटी की तलाश में पलायन कर जाता है। नेशनल करियर सर्विस (NCS) की पोर्टल पर 30 अप्रैल 2022 तक रोजगार के लिए निबंधन कराने वालो में 7 लाख 31 हजार लोग निरक्षर हैं। इसमें करीब पांच लाख 37 हजार बिहार के ही हैं। 15 लाख 43 हजार बेरोजगारों ने देशभर में अपनी शिक्षा का जिक्र नहीं किया है। इनमें मात्र 1572 बिहार के हैं।