बिहार या पूर्वी मिथिलांचल में आज भी सतुआनी पर्व मनाया जाता है जिसका अपना विशेष महत्व है. हालांकि इसे लगभग हर राज्य में इस पर्व को मनाया जाता है भले अलग अलग राज्यों में इसके नाम अलग हो। हर पर्व की तरह ही इस पर्व की अपनी एक खास विशेषता और महत्व है.
इस पर्व में चने के सत्तू और छोटे आम के टिकोला का बहुत महत्व होता है. यह पर्व इन्हीं बातों के लिए भी प्रसिद्ध है. माना जाता है कि इस त्योहार के पहले कोई भी टिकोले का सेवन नहीं करता लेकिन इस पूजा के बाद आम के टिकोले का सेवन शुरू हो जाता है.
ठीक लोहरी की तरह यहां भी नए फल और अनाज की पूजा की जाती है और फिर प्रसाद के रूप में उसे खाया जाता है.
इस दिन सूर्य मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करता है उसे मेष संक्रांति के नाम से जाना जाता है. वहीं, उत्तर भारत के लोग इसे सत्तू संक्रांति या सतुआ संक्रांति के नाम से जानते हैं. इस दिन भगवान सूर्य उत्तरायण की आधी परिक्रमा पूरी करते हैं. इसी के साथ खरमास समाप्त हो जाता है और सभी तरह के शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं.