NEWSPR DESK- हिंदी की विपुल मात्रा और अनेक विधाओं में सृजन करने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र की मृत्यु महज 35 वर्ष की उम्र में छह जनवरी 1885 को हुई थी।
उनके निधन पर कहा गया था कि प्यारे हरीचंद की कहानी रह जाएगी…। वर्तमान में यह बात एकदम सत्य साबित हुई। भारतेंदु जी नहीं रहे, लेकिन उनकी कहानी आज भी हर किसी की जुबान पर है।
साहित्यकार डॉ. इंदीवर पांडेय का कहना है कि भारतेंदु जी अपने समय से बहुत ही आगे थे। साहित्य में भी और राजनीतिक विचार में भी। भारतेंदु ने बहुत पहले ही ब्रिटिश साम्राज्यवादी शोषण का हर स्तर पर प्रतिरोध किया था। भारतेंदु की लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही थी।
देश भर के विद्वानों और लेखकों से उनका संपर्क स्थापित हो चुका था। उनकी लोकप्रियता से प्रभावित होकर काशी के विद्वानों ने 1880 में उन्हें भारतेंदु की उपाधि प्रदान की।