NEWSPR DESK-बिहार की धार्मिक नगरी गयाजी में अति प्राचीन माता गायेश्वरी का मन्दिर है. इस मंदिर में माता की स्थापना कब हुई इसकी जानकारी किसी को नहीं है. माता गायेश्वरी का जिक्र वायु पुराण में है. बताया जाता है कि माता गायेश्वरी गयासुर की कुल देवी थी. इस मंदिर में मां गायेश्वरी सोलह भुजाओं के साथ विराजमान हैं. मन्दिर में अलौकिक शक्ति है. यहां वायुमंडल में मौजूद तत्वों को खींचने की क्षमता है. इसी क्षमता के लिए प्राचीन काल में देश-विदेश से साधु संत सिद्धि प्राप्ति के लिए यहां आते थे.
विष्णुपद मन्दिर से देवघाट जाने के रास्ते में माता गायेश्वरी का मंदिर है. यह मंदिर अन्य मंदिरों से काफी अलग शैली में बना हुआ है. प्राचीन काल में इस मंदिर की प्रसिद्धता काफी थी. माता गायेश्वरी को गया की ग्राम और प्रधान देवी कहा जाता है. इस मंदिर का वायु पुराण के साथ-साथ कई पुराणों में जिक्र है. यहां विराजमान माता गया की रक्षा तो करती ही हैं, साथ ही इस मंदिर को सिद्धि का सर्वोत्तम स्थल भी माना जाता है. जैसे पटना में पटनदेवी और कोलकाता में मां काली है उसी तरह गया में माता गायेश्वरी हैं. माता गायेश्वरी सिर्फ गया की ही नहीं विष्णुलोक की भी रक्षा करती हैं. पांच देवी माता गायेश्वरी, माता दुगेश्वरी, माता कालेश्वरी, माता बागेश्वरी, माता बाघ देवी मिलकर विष्णुलोक की स्थापना करती हैं. इन पांचों देवी की मंदिर गया में ही स्थापित है.
मंदिर की महता के कारण ही विष्णुपद मंदिर की जीर्णोद्धार के वक्त गया आयी महारानी अहिल्याबाई प्रतिदिन यहां पूजा करती थी. अगर कोई पंचकोशी क्षेत्र की परिक्रमा नहीं कर पाता है, वह सिर्फ माता गायेश्वरी की परिक्रमा कर ले तो उसे पंचकोशी तीर्थ क्षेत्र में परिक्रमा का फल मिलता है. माता का मुख दक्षिण से उत्तर की ओर है. अर्थात माता शत्रु नाशिनी भी हैं. मंदिर के अगल-बगल सहस्त्र लिंगेश्वर हैं, जो इसकी महत्ता को और भी बढ़ाता है. माता गायेश्वरी के अगल-बगल में सप्त मातृका विराजमान हैं. इस मंदिर की महिमा को जानने वाले श्रद्धालु देश के कोने-कोने से नवरात्रि के दिनों यहां आते हैं.
मंदिर के पुजारी विजय रंजन कुमार पांडेय ने बताया कि माता गायेश्वरी माता गायत्री, माता सरस्वती और माता मंगला के रूप में इस मन्दिर में विराजमान हैं.इस मन्दिर में श्रद्धा भाव से जो कुछ मांगा जाए, वह जरूर पूरा होता है. माता गायेश्वरी की मन्दिर सिद्धि प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम स्थान है यहां वायुमंडल में मौजूद तत्वों को खींचने की शक्ति मौजूद है इस तत्व को साधना और सिद्धि करने वाले भक्त ही अनुभव कर सकते हैं.