जिउत्पुत्रिका पुत्रीका व्रत मान्यता,शुभ मुहूर्त और भी सब कुछ जानिए।

Patna Desk

 

सनातन धर्म में हर कार्यों को करने हेतु निश्चित समय का निर्धारण किया गया, जिसे मुहूर्त संज्ञा प्रदान है। जिसका समय पंञ्चाङ्गो से प्राप्त होता है, यही उदयव्यपिनी, मध्यान्हव्यापिनी, प्रदोष व्यापिनी, निशा व्यापिनी आदि कालों में विभज्य है।

इन मुहूर्तो में किये जाने वाले सभी धार्मिक कार्य एवं मान्यताओ का प्रतिपादन व व्याख्या, इतिहासविद् घटनाओं का वर्णन अक्षरशः प्रमाण पुराणों से प्राप्त होते हैं , चुकी पुराण का लक्षण ही है प्राचीनता को दर्शाना । विगत पन्द्रह दिन से सभी सोशल मीडिया तथा अन्य संवाद यंत्रों के द्वारा ” जीवित्पुत्रिका व्रत या जिउतियां व्रत”चर्चा में है,। व्रत को लेकर संशय है की यह व्रत 7 अक्टूबर को उदय व्यापिनी में होगा या 6 अक्टूबर को प्रदोष व्यापिनी में होगा इसी संशय में सभी व्रती पड़े हैं, इधर सभी विद्वान और व्रत मुहूर्तो के निर्णायक पंण्डित अपनी बात मनवाने की खुब होढ़ मची है, जिसका सीधा – सरल प्रमाण जिउत्पुत्रिका व्रत के कथा से प्राप्त होता है। इसमें ”पक्षीराज गरुण जी ” ने राजा जिमुतवाहन के त्याग -धर्म, समर्पण तथा कर्तव्यपरायणता को देखकर प्रसन्न होते ही वर दिए, बोले हे राजन् ! सप्तमी से रहित अल्प अष्टमी उदय व्यापिनी हो उसमें निराहार संतान और सौभाग्य रक्षा हेतु ,कुशों स्थापित कर भगवती से प्रार्थना करेगी उनके पति पुत्र स्वस्थ्य व दिर्घायु होते हैं, तथा इस व्रत मे शेष नवमी उदय व्यापिनी हो उसी में व्रत का पारण करना है। सप्तमी से युक्त अष्टमी व्रत जो स्त्रियां या व्रती करती है वह स्वयं के अनिष्ट की कामना करती, यथा माध्वाचार्य वचन है “सप्तमीविधा जिउत्पुत्रिका सवर्दा त्याज्य है” गरुण जी के समक्ष आहार स्वरुप (भोजन)बनकर स्वयं राजा जिमुतवाहन उपस्थित थे वह तिथि आश्विन कृष्ण पक्ष का अष्टमीउदया व्यापिनी तिथि ही थी, जीसका कथा भी पुराणों वर्णित है। भविष्य पुराण में वर्णित कथा लोक प्रचलित है जिसे सभी आचार्य, पुरोहित, ब्राम्हण, व्रती आदि पढ़ते -सुनते तथा सुनाते रहे, इससे सरल, सामयिक तथा सारगर्भित प्रमाण को छोड़कर अन्य किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है।

व्रत करने का शुभ मुहूर्त एवं समय-

अतः:—-व्रत दिनांक 7 अक्टूबर शनिवार को पालन हो।

पारण —- दिनांक 8 अक्टूबर रविवार को प्रातः सुर्य को जल देकर। यही शास्त्रीय विधान है।

 

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