छठ महापर्व पर रविवार की शाम व्रती महिलाओं एवं पुरुषों ने अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य दिया। माना जाता है कि इस व्रत को करने वाली महिलाओं एवं पुरुषों ने धन धान्य, पति-पुत्र तथा सुख समृद्धि से परिपूर्ण रहती हैं।
रविवार की शाम अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य देने से पहले महिला पुरुष एवं बच्चे सोहर गाते हुए नदी पोखर किनारे पहुंचे। बांस के बहंगी, बहंगी लचकत जाय, भरिहवा जै होउं कवनरम, भार घाटे पहुंचाय, बाटै जै पूछेले बटोहिया ई भार कैकरै घाटे जाय आंख तोरे फूटै रे बटोहिया जंगरा लागै तोरे घून, सोहर गाए।
नवंबर को नहाय खाय एवं अगले दिन लोहंडा एवं खरना (छोटी छठ) के साथ प्रारंभ हुए छठ महापर्व के तीसरे दिन आज रविवार को डाला छठ की शाम कैमूर के पश्चिम किनारे नदी के तट, किनारे एवं जिले के कुछ जगहों पर नहर किनारे महिलाओं एवं पुरुषों अपने परिजनों के साथ गीत गाती गाते पहुंचीं। यहां पहले छठी मइया की पूजा की। इसके बाद पानी में घुटनों तक खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया। कल सोमवार की सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर महिलाएं अपना व्रत पूरा करेंगी। किंवदंतियों के अनुसार, छठ पूजा का प्रारंभ महाभारत काल में कुंती द्वारा सूर्य की आराधना व पुत्र कर्ण के जन्म के समय से हुआ था। मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर (तालाब) के किनारे यह पूजा की जाती है। इस व्रत को करने वाली महिलाएं एवं पुरुष पंचमी को एक बार नमक रहित भोजन करती करते हैं, षष्ठी को निर्जला व्रत के बाद अस्त होते हुए सूर्य को विधिपूर्वक पूजा करके अर्घ्य देती हैं। सप्तमी को ऊषाकाल में नदी या तालाब पर जाकर स्नान करती हैं और सूर्योदय होते ही अर्घ्य देकर जल ग्रहण करके व्रत पारायण करती हैं। जिले के कुछ हिस्सों में नहर व नदी किनारे स्थित छठ मैया पूजा स्थल पर जिलाधिकारी निर्देश पर सावन कुमार के निर्देश पर सभी जगह घाटों पर साफ सफाई कराई गई। वहीं, कलई चूना डालकर आस्थावानों को राहत देने का प्रयास किया गया। इसी क्रम में मां मुंडेश्वरी पुजारी पंडित राकेश द्विवेदी ने छठ व्रत कर अस्ताचल भगवान सूर्य को जनकल्याण हेतु अर्घ्य समर्पित किये।