दुर्गावती थाने के दहियांव गांव निवासी गायत्री चौबे आजादी की लड़ाई में जेल तो गए लेकिन अंतिम क्रिया के लिए उनके परिजनों को उनका शव भी नहीं सौंपा गया। आजाद भारत की गाथा में अपनी अमीट छाप छोड़ गए आजादी के दीवाने गायत्री चौबे। जिस समय देश में आजादी की लड़ाई चर्म पर थी उस समय अपनी नौनिहाल बच्चों और नई नवेली दुल्हन को छोड़ आजादी की लड़ाई में कूद पड़े गायत्री चौबे और अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। ट्रेनों को रोकना पटरी उखाड़ना टोली बनाकर अंग्रेजो पर हमला करना डाक लूटना जैसे कारनमें उनके पराक्रम की एक मिसाल उस समय बन गया था । उनकी हरकत से परेशान होकर अंग्रेजों ने उनको किसी तरह एक बगीचे से गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के बाद उनको गया ले जाया गया और न्यायिक मजिस्ट्रेट के यहां उपस्थित कर गया जेल में बंद कर दिया गया ।जहां से फिर उन्हें पटना के बांकीपुर जेल और फिर बाद में फुलवारी शरीफ जेल में भी रखा गाय। पकड़े जाने के बाद अंग्रेजी हुकूमत में उन्हें बहुत ही कठोर दंड दिया और अनेकों यातनाएं दी जिसके कारण उनके दोनों कान बहरे हो गए तथा उनकी मुछे भी उखाड़ लिए गए। गंभीर यातनाओं के चलते वह जेल में ही बीमार रहने लगे लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने उनकी समुचित ढंग से इलाज नहीं कराई जिसके कारण कुछ ही समय में जेल में ही दम तोड़ दिया। अंग्रेजों की जालिम सल्तनत ने हद की सारी सीमाएं तो तब पार कर दी जब उनका शव उनके परिजनों को भी क्रिया कर्म के लिए सुपुर्द नहीं किया। आजादी काल के बाद से आज तक उनके विधवा को और उनके पुत्रों पौत्रों को सरकार की कोई सुविधा नहीं मिली न हीं उनके नाम पर कोई स्मारक बनाया गया न आजाद भारत की सरकार इसे जरूरी समझी। गायत्री चौबे के बड़े नाती शिवशंकर चौबे ने समाचार पत्र के माध्यम से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग की है कि दुर्गावती स्टेशन का नाम बदलकर कम से कम गायत्री चौबे स्टेशन कर दिया जाए जिससे आजादी के निशानी के रूप में उस महान जोधा को याद किया जा सके। यदि सचमुच देखा जाए तो दुर्गावती रेलवे स्टेशन पूर्ण रूप से स्वतंत्रा सेनानी के ग्राम दहियाव मौजा में ही निर्मित और स्थित है। आजादी काल से आज तक कितने सांसद और विधायक इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे फिर भी वैसे आजादी की लड़ाई में कुर्बानी देने वालों सुरविरो की सूधी तक किसी ने नहीं लिया न ही कोई सुविधा दे पाए।
आजादी की लड़ाई में अहम योगदान देने वाला तथा दुर्गावती के स्वतंत्रता सेनानियों की कमान संभालने वाला यह महानायक दुर्गावती के प्रखंड मुख्यालय के अशोक स्तंभ के शिलालेखों तक ही सीमट कर रह गया।