NEWSPR डेस्क। आज एक ऐसे महान भारतीय एथलीट की पुण्यतिथि है जिसने भारत का नाम खेलों में वैश्विक स्तर पर सबसे पहले चमकाया। के.डी. जाधव यानी खाशाबा दादासाहेब जाधव की आज पुण्यतिथि है। यही वो पहलवान थे जिन्होंने भारत को सबसे पहला ओलंपिक मेडल दिलवाया था। उनके पुण्यतिथि पर उन्हें नमन कर श्रद्धांजलि दी। आइये जानते हैं भारत को पहला ओलंपिक मेडल दिलाने वाले पहलवान के बारे में। भूले-बिसरे यादों को ताजा करते हैं।
जीवन परिचय : महाराष्ट्र के कराड में जन्मे के.डी. जाधव की पारिवारिक पृष्ठभूमि कुश्ती की ही रही। खेलों से मोह रखने वाले जाधव को कुश्ती, कबड्डी, दौड़ना, तैराकी आदि खेलों में विशेष रुचि थी। अपने कुश्तीबाज पिता दादा साहेब से कुश्ती के दांव-पेंच सीखने वाले जाधव पढ़ाई में भी अव्वल रहे। उनकी कुश्ती की प्रतिभा के चलते स्थानील लोग उन्हें सर्वश्रेष्ठ कुश्तीवाज कहने लगे। धीरे-धीरे वह राष्ट्रीय स्तर पर श्रेष्ठ कुश्ती खिलाड़ी के रूप में सामने आए।
भारत को पहला सिंगल्स इवेंट मेडल दिलाया : यूं तो ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन हमेशा से हॉकी में बेहतरीन रहा है, लेकिन एकल मुकाबलों में ऐसा कोई खास रिकॉर्ड नहीं है कि जिसपर हम गुमान कर सकें। इस बीच भारत को पहला सिंगल्स इवेंट मेडल महाराष्ट्र के खाशाबा दादासाहेब जाधव ने दिलाया। खाशाबा को ‘पॉकेट डायनमो’ के नाम से भी बुलाया जाता है।
सरकार ने ही पल्ला झाड़ लिया : यह विडंबना है कि जब इस हीरो को आर्थिक सहायता की जरूरत थी, तब सरकार ने ही उनसे पल्ला झाड़ लिया। 25 वर्षों तक मुंबई पुलिस को सेवाएं देने वाले जाधव ने अपने सहकर्मियों तक को यह नहीं पता लगने दिया कि वह ओलंपिक चैंपियन हैं। आपको बता दें कि यह जाधव ही थे कि जिनके ओलंपिक पदक जीतने की वजह से पुलिस विभाग में खेल कोटा शुरू हुआ।
खर्च कोल्हापुर के महाराजा ने उठाया : 1948 में पहली बार ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले जाधव की लंदन ट्रिप का खर्च कोल्हापुर के महाराजा ने उठाया था। हालांकि, तब वह जीते नहीं थे। इसके बाद उन्होंने 1952 में हेलसिंकी ओलंपिक खेलों में फिर से अपनी किस्मत आजमाने की सोची। उन्होंने इसके लिए क्वॉलीफाई तो कर लिया था लेकिन आर्थिक दिक्कतों के चलते वह मजबूर थे। उन्होंने सरकार से आर्थिक मदद की गुजारिश की लेकिन तत्कालीन मुंबई सीएम मोरारजी देसाई ने पल्ला झाड़ लिया।
आसानी से हार मानने वालों में से नहीं थे : के.डी. जाधव खाशाबा आसानी से हार मानने वालों में से नहीं थे। उन्होंने कैसे भी हेलसिंकी जाने की ठान ली थी। ओलंपिक टुअर के लिए उन्होंने अपने परिवार समेत भीख मांगकर जरूरी धनराशि जुटाई। इस बीच उनके लगातार आग्रह पर राज्य सरकार ने भी 4 हजार रुपए की मामूली धनराशि उन्हें दी। वह जिस कॉलेज में पढ़ते थे, उसके प्रिंसिपल ने लगन से खुश होकर उन्हें 7 हज़ार रुपए की मदद की। इस तरह वह हेलसिंकी ओलंपिक जा सके।
भारत का नाम विश्व पटल पर रोशन किया : जाधव ने हेलसिंकी में कांस्य पदक जीतकर भारत का नाम विश्व पटल पर रोशन किया। बताया जाता है कि हेलसिंकी की मैट सर्फेस पर वह संतुलन नहीं बना सके और इस कारण स्वर्ण पदक से चूक गए। ऐसा भी कहा जाता है कि उन खेलों में नियमों के विरुद्ध लगातार दो बाउट रखवाए गए थे। यह भी स्वर्ण पदक से चूकने का एक कारण हो सकता है। पदक जीतने के बाद स्वदेश लौटने पर खुशाबा का जोरदार स्वागत हुआ। भारत आने के बाद उन्होंने कुश्ती लड़कर पैसे कमाए और अपने प्रिंसिपल का कर्ज चुकाया।