NEWSPR डेस्क। नवादा मगध प्रमंडल क्षेत्र का अत्यंत प्रचलित प्रसिद्ध और अपने आप में अनोखा सीतामढ़ी मेला रविवार से शुरू हो गया। सीतामढ़ी मां सीता की वनवास स्थली के रूप में जाना जाता है। कई दशकों से अगहन पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाले मेले का उद्घाटन स्थानीय नवनिर्वाचित मुखिया राकेश कुमार के द्वारा किया गया।
मुखिया ने अपने संबोधन में कहा कि सीतामढ़ी वर्षों पुराना धार्मिक स्थल है। सरकार इन्हें पर्यटक स्थल के रूप में घोषणा करे। ताकि मां सीता के पवित्र मंदिर मेले के अलावे अन्य दिन भी गुलजार हो सके और हर तरह की सुविधा मुहैया करवाएं।
माता का आशीष पाने की रहती है होड़: माता सीता की निर्वासन स्थली सीतामढ़ी में आने वाले हजारों श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं। इसके उपरांत विधि पूर्वक पूजा अर्चना करने के बाद मां सीता का आशीर्वाद लेते हैं। गोद भरी करने की कामना के साथ पहुंचने वाली माताएं मन्नत पूरी होने पर भी पहुंचती और माता का अभार जताती है। सीतामढ़ी के आसपस उपलब्ध साक्ष्य, पौराणिक मान्यताएं एवं भौगोलिक स्थिति इस बात को प्रमाणित करती है कि यही सीतामढ़ी स्थल में माता सीता की निर्वासन स्थली रही है। 12 वर्ष के लिए वनवास के निकले माता सीता महर्षि बाल्मीकि के आश्रम में ही सीतामढ़ी में वनवासी जीवन व्यतीत करने लगी थी।
मेले में इन सभी चीजों की है सुविधा : मोटरसाइकिल लगाने के लिए पार्किंग, सीसीटीवी कैमरा, मेडिकल टीम, पुलिस प्रशासन मुस्तैद आदि।
मेले में इन सभी चीजों को देखी गई कमी: शौचालय एक भी नहीं, पेयजल व्यवस्था नहीं, ठंड से बचाव हेतु अलाव की व्यवस्था नहीं, नियंत्रण कक्ष और पूछताछ केंद्र नहीं सहित कई सुविधा नहीं है।
जातीय मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है यह स्थल : सीतामढ़ी एक ऐसा धर्म स्थल है जहां अलग-अलग जातियों के अलग-अलग मंदिर और धर्मशाला भी है। यहां लगभग दर्जनों जाति के दर्जनों मंदिर स्थित है। हालांकि किसी को भी मंदिर में आने को मनाही नहीं है फिर भी विशेष मंदिर में विशेष जाति के लोग जमे रहते हैं। मेला में आस्था के साथ जातीय चौपाल भी शुरू हो जाती है। दर्जन भर से ज्यादा जातियों की अलग-अलग मंदिर और ठाकुरबाङी में संबंधित जाति के लोग ठहरे रहते हैं। यहां जातीय बैठकों का दौर जमकर चलता है। विभिन्न जाति और संगठनों के साथ पोस्टर बैनर अपनी अपनी उपस्थिति दर्शाते हैं।
नवादा से अनिल शर्मा की रिपोर्ट