नालंदा जिले में है पांच ऐसे गांव जहां सदियों से सादगी के साथ मनाई जाती है होली।

Patna Desk

 

बिहार के नालंदा जिले कुछ गांव ऐसे हैं, जहां होली के दिन लोग बहुत ही सादगी से ज़िदंगी गुज़ारते हैं। रंग गुलाल उड़ाकर होली नहीं मनाते हैं बल्कि ग्रामीण सदियों से चली आ रही परंपरा को निभाते हैं। नालंदा ज़िले में 5 गांव है, जहां रंग गुलाल और हुड़दंग से होली नहीं मनाते हैं। इन गांवों में होली मनाने की अनोखी परंपरा है। आप भी हैरान रह जाएंगे कि क्या ऐसा भी मुमकिन है। इन गांवों के लोग होली के दिन रंग गुलाल पकवान नहीं बनाते बल्कि भक्ति में लीन रहते हैं। होली के दिन गांव के लोग चूल्हा भी नहीं जलाते है। शुद्ध शाकाहारी बासी खाना ही खाते हैं। शराब और मांस को छूते तक नहीं हैं और फूहड़ गीत बजाने से भी परहेज़ करते हैं। यह पांचों गांव बिहार शरीफ सदर प्रखंड के पास स्थित है। बासवन बीघा, पतुआना, नकटपुरा, ढिबरापर और डेढ़धरा गांव में होली के दिन का नज़ारा पूरी तरह से अलग होता है।

अनोखी होली मनाने की परंपरा पर स्थानीय लोगों ने बताया कि गांव में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है बसीऔडा के दिन ग्रामीण होली का लुत्फ उठाते हैं। बताया जाता है कि एक सिद्ध पुरुष संत बाबा गांव आए थे और यहा झाड़फुक करते थे। कई साल पहले उनकी मौत हो गई, उनके नाम पर गांव में आज भी मंदिर मौजूद है। दूर दराज इलाके से श्रद्धालु मत्था टेकने यहां पहुंचते हैं। सिद्ध पुरुष संत बाबा ने होली को लेकर गांव के लोगों से कहा था कि, त्यौहार में नशा और फूहड़ गीत बजाने से अच्छा है कि भगवान को याद करो। इससे किसी प्रकार का झंझट नहीं होगा। आपसी सौहार्द और भाईचारा बनाए रखने के लिए अखंड पूजा करो। इससे शांति के साथ खुशहाल जिंदगी होगी। बाबा एक सामाजिक इंसान भी थे, लोगों ने उनकी बातों पर अमल किया और तब से यह परंपरा आज तक कामयम है।

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