NEWSPR DESK- बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत उनके जन्मशताब्दी वर्ष पर भारत रत्न से सम्मानित किया जाना बिहार सहित देश के लिए गौरव की बात है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए यह भी कहा कि सामाजिक न्याय के प्रतीक महान जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित किया जाना समाज के हाशिये पर खड़े उन तमाम लोगों का सम्मान है जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन से समाज की दशा और दिशा बदलने का काम किया। कर्पूरी ठाकुर जी वह दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके थे और पिछड़े वर्गों के हितों के हमेशा हिमायती बने रहे।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरफ से तथा जदयू की तरफ से कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न दिए जाने की लंबे समय से मांग की जा रही थी, जो आज पूरी हो गई। कर्पूरी ठाकुर जी की स्मृतियों को कायम रखने के लिए नीतीश कुमार ने कर्पूरी ठाकुर जी के पैतृक गांव पितौझिया (समस्तीपुर) का नाम उनके सम्मान में बदलकर कर्पूरी ग्राम कर दिया था।
हमेशा से अपनी सरकारी और गैर सरकारी सभी सभाओं में कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न दिए जाने की मांग करते रहे हैं। कर्पूरी ठाकुर जी दलितों के उत्थान के लिए अटूट प्रतिबद्धता और दूरदर्शी नेतृत्व के साथ भारत के सामाजिक-राजनीतिक अस्तित्व को कायम रखने में अपना भरपूर योगदान दिया था।
24 जनवरी को उनकी जयंती मनाई जाती है। इस जयंती के बहाने बिहार के लगभग सभी दल कर्पूरी ठाकुर की विरासत का दावा करते हैं। कपूरी ठाकुर बिहार की राजनीति में गरीबों और दबे-कुचले वर्ग की आवाज बनकर उभरे थे। कर्पूरी ठाकुर बिहार में दो बार मुख्यमंत्री एक बार उप मुख्यमंत्री रहे। इसके साथ ही दशकों तक विपक्ष के नेता रहे। कर्पूरी ठाकुर 1952 में पहली बार विधानसभा चुनाव में जीते। जननायक कर्पूरी ठाकुर बिहार के पहले गैर- कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे। 1967 में कर्पूरी ठाकुर ने उप मुख्यमंत्री बनने पर बिहार में अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म कर दिया।
इसके चलते उनकी आलोचना भी हुई।
वर्ष 1971 में मुख्यमंत्री बनने पर ठाकुर ने किसानों को बड़ी राहत देते हुए गैर- लाभकारी जमीन पर मालगुजारी टैक्स को खत्म कर दिया था। 1977 में मुख्यमंत्री बनने पर नौकरियों में मुंगेरीलाल कमीशन लागू कर गरीबों और पिछड़ों को आरक्षण देकर वो सवर्णों के दुश्मन बन गए. आइए आज हम कर्पूरी ठाकुर के बारे में जानते हैं।
कर्पूरी ठाकुर का जन्म समस्तीपुर जिले के पितौझिया गांव जो अब कर्पूरी ग्राम में गोकुल ठाकुर जो कि सीमांत किसान थे के घर हुआ था। अपने पारंपरिक पेशा, नाई का काम करते थे. भारत छोड़ो आंदोलन के समय कर्पूरी ठाकुर ने करीब ढाई साल जेल में बिताना पीडीए था।
जननायक कर्पूरी ठाकुर 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 और 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 के दौरान दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे।
बिहार के नाई परिवार में जन्में ठाकुर अखिल भारतीय छात्र संघ में रहे. लोकनायक जयप्रकाश नारायण व समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया इनके राजनीतिक गुरु थे। वे अपने जीवनकाल में समाज के हित में ही काम करते रहे। उनकी लोकप्रियता के कारण उन्हें जननायक कहा जाता है। जननायक कर्पूरी ठाकुर भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक राजनीतिज्ञ और बिहार के दूसरे उपमख्यमंत्री भी रह चुके हैं।