NEWSPR डेस्क। बिहार में बसंत के आते ही पेड़ पर जब लीची का फल आना शुरू होता है तब फल उत्पादक किसान खुश हो जाते हैं। बिहार में मुजफ्फरपुर के बाद बेगूसराय का बदलपुरा गांव लीची का सबसे बड़ा उत्पादक है।प्रत्येक साल बदलपुरा का लीची आसपास के जिला नहीं, उत्तर प्रदेश, असम और पश्चिम बंगाल के बाजारों तक भी जाता रहा लेकिन इस वर्ष एक बार फिर लीची उत्पादकों पर प्रकृति की मार पड़ी है।
पिछले दो साल से कोरोना लॉकडाउन के कारण बाहर से कोई व्यापारी नहीं आए थे तो किसानों ने किसी तरह से औने-पौने दाम पर स्थानीय बाजार में लीची भेजा। इस वर्ष जब सब कुछ सामान्य हुआ और लीची पर बसंत आते ही मंजर लदे तो किसानों के चेहरे खिल उठे थे। किसानों को उम्मीद थी कि इस बार फिर दूर-दूर के व्यापारी आकर लीची ले जाएंगे।
वहीं बेगूसराय में पेप्सी का प्लांट लगा है और मुख्यमंत्री द्वारा उसमें लीची प्रोसेसिंग की भी घोषणा की गई है तो पेप्सी वाले भी लीची खरीदेंगे लेकिन प्रकृति की मार ने किसानों के सभी मंसूबे पर पानी फेर दिया। ना तो बाहरी व्यापारी आए और ना ही पेप्सी वाले खरीदने के लिए आए हैं। पिछले वर्षों की तुलना में इस बार 25 से 30 प्रतिशत फल भी नहीं है, जो फल है भी तो वे बढ़ नहीं सके और छोटे-छोटे फल ही अब पकने लगे हैं। जिसके कारण दूरदराज की बात तो दूर स्थानीय व्यवसायी भी आकर लौट जाते हैं।
किसान राम विनय सिंह ने बताया कि बिहार में मुजफ्फरपुर के बाद बेगूसराय का हमारा गांव बदलपुरा लीची उत्पादन का हब है। यहां एक हजार एकड़ से अधिक में लीची की खेती होती है। लीची का अच्छा पैदावार देख किसानों ने बड़े पैमाने पर लीची का बगीचा लगाया, यह सच है कि आमदनी अच्छी होती थी। लेकिन पिछले दो-तीन वर्षों से कोरोना में सब कुछ बर्बाद हो गया, दो साल कोरोना वायरस के कारण बाहरी व्यापारी नहीं आ सके तो उचित दाम नहीं मिल सका।
वहीं किसानों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार किसानों की आय दोगुनी करने का प्रयास कर रही है। इसके लिए लगातार काम भी हो रहे हैं, लेकिन हम लीची उत्पादकों के लिए धरातल पर कुछ नहीं किया जा रहा है। जिससे प्रशासनिक अदूरदर्शिता तथा प्रकृति की मार झेलने के लिए हम सब किसान मजबूर हैं।