NEWSPR डेस्क। भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने पार्टी द्वारा कोविड काल में हुई मौतों के आंकड़ों की प्रोविजनल रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि सरकार कम से कम 20 गुना कम मौत का आंकड़ा बता रही है. यह बिलकुल अन्याय है. इस मसले पर माले विधायक दल ने बिहार विधानसभा अध्यक्ष को भी जांच रिपोर्ट की एक कॉपी सौंपी और सदन में बहस की मांग की है.
माले राज्य सचिव ने कहा कि कोविड के दूसरे चरण की भयावहता को हम सबने महसूस किया है. शायद ही हममें से कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसके किसी प्रियजन की मौत नहीं हुई हो. हम सबने ऑक्सीजन के अभाव में लोगों को मरते देखा है. लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण लोग हमारी आंखों के सामने मरते रहे और हम चाहकर भी उनकी जिंदगी नहीं बचा सके. दूसरे चरण ने जो तांडव मचाया, उससे हम शायद ही कभी उबर पायेंगे और तीसरा चरण दस्तक भी देने लगा है. मौत की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भोजपुर जिले के कोइलवर प्रखंड स्थित कुल्हड़िया गांव में 59 और बड़हरा के कोल्हारामपुर में 45 मौतें हुईं. कुल्हड़िया में तो जनवरी महीने में ही 13 मौतें हो चुकी थीं।
माला राज्य सचिव ने बिहार के स्वास्थ्य मंत्री पर झूठ बोलने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि मोटे तौर पर अनुमान लगाया जा रहा था कि अप्रैल-मई के महीने में पूरे राज्य में 2 लाख के करीब मौतें हुई हैं, जो हमारी जांच से भी सही साबित हो रहा है. इसके बावजूद कोविड से मौत का सरकारी आंकड़ा महज 9632 है, जिसमें कोविड के प्रथम चरण के दौरान हुई 1500 मौतें भी शामिल हैं. अर्थात सरकार मौत का 20 गुना आंकड़ा छुपा रही है. यह एक ऐसा अपराध है जिसके लिए सरकार को कभी माफ नहीं किया जा सकता है. सरकार सच्चाई पर पर्दा डालने के लिए जानबूझकर यह आंकड़ा छुपा रही है.
साथ ही उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी ने बिहार के 9 जिले के 66 प्रखंडों के 515 पंचायतों के 1693 गांवों में 1 अप्रैल 2021 से लेकर 31 मई 2021 तक अर्थात महामारी के दूसरे चरण के दौरान मारे गए लोगों का आंकड़ा निकाला है. अभी भी कई जिलों की रिपोर्ट आनी बाकी है. इसके मुताबिक उपर्युक्त जांचे गए 1693 गांवों में 6420 कोविड लक्षणों व 780 लोगों के अन्य कारणों से मौतें हुई हैं. अर्थात कुल 7200 मौतें हुईं. इनमें हमें 939 व्यक्ति के कोविड पाॅजिटिव होने व 338 लोगों के कोविड निगेटिव होने का आंकड़ा मिला है. यह कुल 1277 होता है, जबकि 5923 मृतकों की कोई जांच ही नहीं हुई. अन्य कारणों से मृत 780 लोगों में एक छोटा सा हिस्सा स्वाभाविक या पहले से गंभीर रूप से बीमार लोगों का है. इसका बड़ा हिस्सा ऐसे लोगों का है जो महामारी के कारण अस्पतालों में गैरकोविड मरीजों का इलाज बंद होने व लाॅकडाउन के कारण आवागमन बाधित होने से मारे गए. सरकार का फर्ज बनता है कि इन्हें भी मुआवजा दे.
हमारे द्वारा जांचे गए गांव बिहार के कुल गांवों के 3.75 प्रतिशत होते हैं. इसमें ही 7200 मौतों का आंकड़ा है. जबकि बिहार में तकरीबन 50 हजार छोटे-बड़े गांव हैं. इसलिए मौत का वास्तविक आंकड़ा सरकारी आंकड़े के लगभग 20 गुना अधिक 2 लाख तक पहुंचता है. हमारी टीम शहरों अथवा कस्बों की जांच न के बराबर कर सकी है. यदि हम ऐसा कर पाते तो जाहिर है कि यह आंकड़ा और अधिक हो जाएगा.
मृतकों में 13.04 प्रतिशत लोगों की कोविड रिपोर्ट पाॅजिटिव आई. महज 17.73 प्रतिशत ही कोविड जांच हो पाई. 82.26 प्रतिशत मृतकों की कोई जांच ही नहीं हो पाई, जो कोविड लक्षणों से पीड़ित थे.
इस 7200 के आंकड़े में 3644 लोगों ने देहाती, 2445 लोगों ने प्राइवेट व महज 1111 लोगों ने सरकारी अस्पताल में इलाज कराया. यह आंकड़ा साबित करता है कि सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था किस कदर नकारा साबित हुई है और लोगों का विश्वास खो चुकी है. इन मृतकों में महज 6 लोगों को मुआवजा मिल सका है.
ये आंकड़े कोविड पर सरकार द्वारा लगातार बोले जा रहे झूठ को बेनकाब करते हैं. यदि इसके प्रति सरकार और हम सब गंभीर नहीं होते हैं, तो आखिर किस प्रकार संभावित तीसरे चरण की चुनौतियांे से निबट पायेंगे?
अतः अबतक की इस सबसे बड़ी त्रासदी को गंभीरता से लेना चाहिए और इसपर व्यापक विचार-विमर्श कराया जाना चाहिए. हम सरकार को कहना चाहते हैं कि वह आंकड़ांे को छुपाने की बजाए सच्चाई कबूल करना स्वीकार करे. पटना उच्च न्यायालय ने भी बारंबार मौत के आंकड़ों को छुपाने पर सरकार की खिंचाई की है.
भाकपा-माले विधायक दल ने महामारी की मार झेल रही जनता के व्यापक हित में विधानसभा अध्यक्ष से अपने स्तर पर संज्ञान लेने और सदन में एक सार्थक बहस कराने व सरकार को एक-एक मौत को सूचीबद्ध करने और उनके परिजनों को मुआवजा देने के लिए दिशा-निर्देश देने की मांग की है.