NEWSPR डेस्क। बिहार की भाजपा में जाति की राजनीति तूल पकड़ते हुए दिख रही। कहा जा रहा कि कुछ नेताओं को खुलेआम जलील किया जा रहा। बिहार बीजेपी नेतृत्व और दल के कर्ता-धर्ता को सवर्ण जाति से आने वाले नेताओं से काफी समस्या हो रही। जिसके कारण उनको पार्टी से हटाने पर जोर दिया जा रहा। यदि इसमें वह सफल नहीं हो रहे तो उनको जलील किया जा रहा। इसमें वाक्या नीतीश मिश्रा का लिया जा रहा। किसी बात को लेकर नित्यानंद राय ने उनको जलील किया था। उनके द्वारा दिए गए मतों पर भड़क उठे थे। जिसके बाद ब्राह्मण समाज में व्यापक आक्रोश है।
बता दें कि विधान परिषद चुनाव के दौरान भाजपा नेतृत्व ने तेजतर्रार नेता व सीटिंग कैंडिडेट सच्चिदानंद राय का टिकट ऐन वक्त पर काट दिया था। वहां से एक गुमनाम व्यक्ति को उम्मीदवार बनाया गया। हालांकि बीजेपी नेतृत्व को इस करनी का फल भोगना पड़ा। सारण के वोटरों ने करारा जवाब दिया। भाजपा के कर्ताधर्ताओं ने जिसे बेटिकट किया था वो रिकार्ड मतों के अंतर से फिर से चुनाव जीत कर नेतृत्व के मुंह पर करारा तमाचा जड़ दिया। बोचहां उप चुनाव में भी बीजेपी के कुछ नेताओं और मंत्री ने दल के कोर वोटरों यानि अगड़ी जाति के वोटरों को नाराज किया। इसका खामियाजा दल को भुगतना पड़ा। बोचहां के रण में दल की ऐसी दुर्दशा हुई कि नेतृत्व पानी-पानी हो गया।
वहीं बोचहां चुनाव के बाद एक बार फिर से दल के तेजतर्रार नेताओं को टारगेट किया जाने लगा है। अमित शाह के कार्यक्रम की तैयारी बैठक में जिस तरह से केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने ब्राह्मण समाज से आने वाले नेता व विधायक नीतीश मिश्रा पर भड़क गए। मामला 13 अप्रैल का है जब प्रदेश कार्यालय में 23 तारीख को आयोजित विजयोत्सव कार्यक्रम की तैयारी को लेकर समीक्षा बैठक आयोजित की गई थी। उस बैठक में पूर्व मंत्री और कद्दावर नेता नीतीश मिश्रा की सलाह पर नित्यानंद राय भड़क गय़े थे। सार्वजनिक तौर पर जलील करने की कोशिश की थी। मतलब साफ है कि बिहार में नेतृत्वकर्ता कालीदास की भूमिका में बैठ गया है। जिस कोर वोटर के सहारे चुनाव में बीजेपी की नैया पार लगती है उसे ही डुबाने में लगी है। जिस डाल पर बैठे हैं उसको काटने का सिलसिला शुरू कर दिया है। दो चुनाव परिणामों ने सबक देने की भरपूर कोशिश की है,लेकिन भाजपाई कालिदास मानने को तैयार नहीं।
बता दें कि नीतीश मिश्रा नीतीश कुमार की कैबिनेट में कई विभागों के मंत्री रह चुके हैं। उन्होंने बेहतर तरीके से अपने विभाग का संचालन किया है। शांत और मृदुभाषी नीतीश मिश्रा की काफी पढ़े-लिखे नेताओं में शुमार है। अपनी बातों को स्पष्ट तरीके से बिना विवाद के रखने की कला है। 13 तारीख की बैठक में नित्यानंद राय ने जिस तरह से भड़के उसके बाद दल के अंदर हलचल मची हुई है। सोशल मीडिया में नित्यानंद राय के बारे में काफी भला-बुरा कहा जा रहा। नीतीश मिश्रा के प्रति सहानुभूति देखी जा रही है।
नीतीश मिश्रा जैसे बड़े कद के नेता को फजीहत किये जाने के बाद दल के अंदर और बाहर तेज चर्चा है। इनकी जगह अगर कोई दूसरा नेता होता है, शायद इतनी चर्चा भी नहीं होती। इस प्रकरण के बाद मिथिलांचल इलाके के लोगों में भारी गुस्सा देखा जा रहा। ब्राह्म्ण समाज के लोगों में अंदर ही अंदर नेतृत्व व नित्यानंद राय के प्रति भारी गुस्सा है। यह गुस्सा नित्यानंद राय के संसदीय क्षेत्र उजियारपुर में भी देखने को मिल रहा।
वहीं लखीसराय से आने वाले बीजेपी से जुड़े नेता रामनिवास कुमार फेसबुक पर लिखते हैं कि स्वघोषित भावी मुख्यमंत्री अपने समाज का 1 फीसदी वोट भी नहीं ला पाए। लेकिन जो समाज का वोट भाजपा में पहले से है, इसे खोने का कारण जरूर बनेंगे। पहले भूमिहार नेताओं को औकात दिखाया और अब ब्राह्मण नेताओं की बेइज्जती। लालू यादव अराजकता वर्ग का सिर्फ सिंबल थे। वैसे ही अगर ये भावी वाले सच में मुख्यमंत्री बन गये तो ये उससे बड़ा सिंबल बनेंगे। इसके पहले दल के अंदर भूमिहार नेताओं को ठिकाना लगाये जाने और सच्चिदानंद राय को टिकट काटने, मुजफ्फरपुर में भूमिहार समाज से आने वाले पूर्व मंत्री सुरेश शर्मा को एक मंत्री द्वारा प्रताड़ित किये जाने को लेकर इस समाज में गुस्सा था ही, अब नीतीश मिश्रा को खरी-खोटी सुनाये जाने के बाद ब्राह्मणों में भी भारी गुस्सा देखा जा रहा है।