मनुष्य जीवन की आचार संहिता है भागवत्कथा- पं०विश्वकान्ताचर्यजी।

Patna Desk

 

जब जब मनुष्य अपने नित्य नैमित्तिक कर्म को छोडता है। जीवन जीने की सभ्यता को भुलता है। मूलप्रकृति के सिद्धांतों को तोडता है। तब तब वह केवल और केवल कष्ट को ही प्राप्त करता है । धर्मयुक्त सांगोपांग उपासना को हम तभी छोड देते है जब धर्मसंवाद नहीं करते है और भक्ति से कोशो दुर हो जाते हैं। तब लगता हम जीवों के लिए प्रभु के शरण में जाने के लिए देवकी वसुदेव, यशोदा के सिद्धांतों को, गोप गोपियों के प्रेम को धारण करना पडेगा। जिसका सूत्र सारगर्भित ढंग से श्रीमद्भागवत महापुराण में मिलता है और तब जाके दिखता है कि मानव सभ्यता के लिए भागवत् से बडा आचार संहिता और कोई दूसरा हो ही नहीं सकता है। उक्त बातें वृंदावन, वाराणसी से चलकर आये हुए अंतरराष्ट्रीय कथावाचक भागवत्मणी पूज्य श्री पंडित विश्वकान्ताचार्यजी महाराज ने भभुआ जिले के निसीजा गांव में प्रवाहित हो रही संगीतमय श्रीमद्भागवत्कथा के भव्य विशाल मंच से कही। उन्होंने कहा कि भयानक रोग को औषधि से नष्ट किया जा सकता है, परन्तु भवरोग को एवं त्रिताप को समाप्त करना होगा। तो उसके लिए भागवत भगवान के शरण में आना होगा। युवाओं को एवं हम भारतीयों के लिए तो शुकाचार्यजी द्वारा परिक्षित को दिया गया। ज्ञानोपदेश कलिकाल में प्राप्त हुआ है।

महाराज जी ने कहा कि हरेक भक्त के मनोकामनाओं को मेरे गोविंद क्षणात वैसे हीं पूर्ण कर देते हैं जैसे देवकी के दुःख को दुर करने के लिए मेरे गोविंद ततक्षण अवतार ग्रहण कर सम्मूख खडे हो गये और अपने लिला के माध्यम से मां के साथ गोपी,गोपबालकों के साथ सबको कृतार्थ कर दिए। कल के लीला में ध्रुव, प्रह्लाद, अजामिल प्रसंग के साथ समुद्रमंथन, मत्सावतार,रामावतार, कृष्णावतार एवं गोवर्धन धारण के लीलाओं को सविस्तार ढंग से गाया गया।

इधर इस संबंध में जानकारी देते हुए आयोजन के आयोजक रामेश्वरम उपाध्याय एवं संयोजक शिवकुमार शुक्ल तथा पप्पू उपाध्याय ने बताया कि कथा के मध्य श्रोताओं को ऐसा आनंद आने लगा है कि हरेक दीन भीड बढता जा रहा है लोग एक दुसरे से केवल महाराज के सरसता एवं सरल विचार के साथ साथ उनके कथा शैली कि ही चर्चा करते सुने जा रहे हैं।

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