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महान सेनानी एवं क्रांतिकारी उधम सिंह की जयंती के मौके पर पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष सह प्रवक्ता JDU ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के संजीव श्रीवास्तव ने सादर नमन किया।

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स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी एवं क्रांतिकारी उधम सिंह की आज जयंती हैं. महान सेनानी एवं क्रांतिकारी उधम सिंह की जयंती के मौके पर पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष सह प्रवक्ता JDU ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के संजीव श्रीवास्तव ने सादर नमन किया। उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था. सन 1901 में उधम सिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया. उधम सिंह  का बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्ता सिंह था जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधम सिंह और साधु सिंह के रूप में नए नाम मिले. उधम सिंह  ने जलियांवाला बाग नरसंहार को अंजाम देने वाले जनरल डायर को उसके देश में घुसकर गोली मारी थी. 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन जलियांवाला बाग में लोगों पर जनरल डायर ने गोलियां चलवाई थी, जिससे पूरे भारत में आक्रोश का माहौल था.

इस घटना से उधम सिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली. अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की. सन 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे. वहां उन्होंने अपना मिशन पूरा करने के लिए एक रिवॉल्वर भी खरीद ली. अब उन्हें बस माइकल ओ डायर को ठिकाने लगाने के लिए सही समय का इंतजार था

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उधम सिंह को जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लेने का मौका 1940 में मिला. जलियांवाला बाग नरसंहार के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को लंदन की रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी के हाल में एक बैठक थी, जहां माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था. उधम सिंह उस बैठक में एक मोटी किताब में रिवॉल्वर छिपाकर पहुंचे. इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके.

बैठक के बाद दीवार के पीछे से उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं. दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई. उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी. उन पर मुकदमा चला. 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई.

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