पटना/मुंबई
बॉलीवुड को बिहार ने अनिगिनत प्रतिभाएं दी। आज हम एक ऐसी ही प्रतिभा की बात कर रहे हैं, जिसका संबंध एक्टिंग, रायटिंग या डायरेक्शन नहीं, बल्कि ब्रांड मार्केटिंग से है। ये शख्स हैं प्रभात चौधरी, जिन्होंने भारत की सबसे बड़ी फिल्म बाहुबली से लेकर ह्रतिक रौशन, आमिर खान, दीपिका पादुकोण, शाहरूख खान, प्रभास, श्रद्धा कपूर, टाइगर श्रॉफ जैसे बड़े फिल्म स्टारों की ब्रांडिंग की है और आज ये इनके पर्सनल क्लाइंट हैं। मार्केटिंग मौजूदा दौर की जरूरत है और ब्रांडिंग इसका अहम हिसा है। गूगल प्रभात चौधरी की पहचान सबसे बड़े स्ट्रेटजिस्ट के रूप में करता है, तो बॉलीवुड में ब्रांडिंग के लिए वे सबकी पहली पसंद हैं। पीआर एजेंसी स्पाइस और डिजिटल मार्केंटिंग एजेंसी के फाउंडर प्रभात मूल रूप से दरभंगा जिले के रहने वाले हैं और आज वे मुंबई के सबसे पॉश इलाके पाली हिल में रहते हैं। उनकी शिक्षा भले ग्रेजुएशन तक हुई है, लेकिन उनके काम को आई आई एम बैंगलोर की मीडिया सिलेब्स में पढ़ाई जा रही है। प्रभात का जीवन संघर्ष प्रेरणादायी है। हमने प्रभात से उनके बारे में बातचीत की। पेश है उसके कुछ अंश….
आप दरभंगा के रहने वाले हैं। वहां पारिवारिक माहौल के बारे में कुछ बताएं।
जवाब : दरभंगा में मैं पंचोप का रहने वाला हूं। मां वीना झा और पंचोप निवासी पिता आनंद कुमार चौधरी की कम उम्र में शादी हो गई थी। मेरा पालन-पोषण मुख्यतः ननिहाल और दादा के पास ही हुआ। नाना लक्ष्मी नारायण झा सिविल सेवा अधिकारी थे। वे मधुबनी में बतौर कलेक्टर सेवारत रहे। दादा दरभंगा में ज़मींदारी संभालते थे। बाद में पिता जी ने भी ठेकेदारी की और राजनीति में सक्रिय रहे। मुझ पर नानी के व्यक्तित्व का खास असर पड़ा। वे फ़िल्मों की शौकीन थीं और मुंबई के मालाबार हिल की रहने वाली थीं।
पढ़ाई-लिखाई कहां से की ? मुंबई जाने का इरादा कैसे बना ?
जवाब : होली क्रॉस, दरभंगा और पटना के सेंट माइकल स्कूल से बारहवीं की पढ़ाई के बाद मैं दिल्ली चला गया। दिल्ली यूनिवर्सिटी से इंगलिश ऑनर्स की पढ़ाई के दौरान मैंने दिल्ली को अच्छी तरह समझने की कोशिश की। स्थानीयता के अध्ययन की ललक बचपन से थी। मैं जहां भी होता हूं, वहां की संस्कृति, लोक-समाज और जनजीवन से जुड़ने की कोशिश ज़रूर करता हूं। इसका करियर में भी लाभ मिला है। फ़िल्मों की मार्केटिंग, प्रचार और ब्रांड स्थापना की मुहिम को जब छोटे शहरों तक ले जाने की पहल की तो किसी तरह की दिक्कत नहीं हुई। जहां तक मुंबई आने की बात है- हमेशा से सोचता था कि ‘मैं क्या हूं और मेरी तलाश क्या है’, यही खोज मुंबई लेकर आई।20 साल की उम्र में जब मुंबई आया, तब सामने दो ही विकल्प थे। या तो दरभंगा जाकर पिता जी की ज़मींदारी संभालता या फिर नानी घर की परंपरा के मुताबिक, सिविल सर्विसेज की तैयारी करता। मैं इन दोनों से अलग कुछ करना चाहता था।
कहा जाता है कि आप बॉलीवुड की उन हस्तियों में है जो मुश्किल से हाथ में आते हैं।
जवाब : ये कहना ठीक नहीं होगा। हम बड़े स्टारों के अलावा नए लोगों के साथ भी काम करते हैं। सिद्धान्त चतुर्वेदी जो मूलतः बलिया के निवासी हैं उनके साथ हम काम कर रहे हैं और उनका फ़िल्म career ऊँचा जा रहा है। ऐसे ही हम दिशा पाटनी के साथ काम कर रहे हैं, वो भी एक छोटे शहर से हैं और बोहोत अच्छा कर रही है। राधिका आप्टे, सान्या मल्होत्रा, commercially बड़े स्टार्स नहीं है पर बोहोत अच्छे और प्रतिभावान स्टार्स हैं जो तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं। हाँ में व्यस्त ज़रूर हूँ और चाहता हूँ कि उतना ही काम करूँ जिसके साथ न्याय कर सकु। ना ज़ारूर कहता हूँ लेकिन उसका कारण बस वक़्त की कमी है।
आपको प्रभाव शाली कहा जाता है। पावर लिस्टों मैं आपका नाम आता है।
जवाब : प्रभाव शाली मैं नहीं हूँ, मेरा काम बन गया है। हम आज मार्केटिंग के दौर में जी रहे हैं। हमारा समाज सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया को पूरी तरीक़े से अपना चुका है। हम बदल चुके हैं । एक ट्वीट या एक Whatspp forward हमारी धारणा बदल सकता है। ये दौर ऐसा है जहां मार्केटिंग को पावर्फ़ल माना जा रहा है।
कौन सा वो एक कैम्पेन है जिसने आपको प्रोफ़ेशनल सैटिस्फ़ैक्शन दिया।
जवाब : बाहुबली को कट्टप्पा ने क्यूँ मारा ! इस वाक्य ने जिज्ञासा का एक इतिहास रच दिया। मार्केटिंग का मूल स्रोत जिज्ञासा ही है। आपको एक और बिहारी नाम से हमेशा compare किया जाता है और वो है प्रशांत किशोर।
जवाब : शुरू में मुझे काफ़ी आश्चर्य हुआ इस कम्पैरिजन पर। हम दोनो का work फ़ील्ड बिलकुल अलग है पर शायद काम स्ट्रैटेजी का ही है। सच कहूँ तो ये गर्व की बात है मेरे लिए। अच्छा भी लगता है की हम दोनों बिहार से हैं।