NEWSPR डेस्क। सुप्रसिद्ध लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी की आज पुण्यतिथि है। जेडीयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष सह प्रवक्ता संजीव श्रीवास्तव ने साहित्य जगत में महाश्वेता देवी के योगदान को याद किया और विनम्र श्रद्धांजलि दी। ‘हाजार चौराशीर मां’, ‘चोट्टी मुंडा एवं तार तीर’, ‘रुदाली’ और ‘झांशीर रानी’ जैसी कृतियों के लिए जानी जाने वाली महाश्वेता देवी को संजीव श्रीवास्तव ने प्रेरणा करार दिया।
14 जनवरी 1926 को अविभाजित भारत के ढाका में जन्मी महाश्वेता देवी की मृत्यु 28 जुलाई 2016 के दिन कोलकाता में हुई। महाश्वेता देवी ने बांग्ला भाषा में बेहद संवेदनशील तथा वैचारिक लेखन द्वारा उपन्यास तथा कहानियों के साहित्य को समृद्धशाली बनाया। अपने लेखन कार्य के साथ-साथ महाश्वेता देवी ने समाज सेवा में भी सदैव सक्रियता से भाग लिया और इसमें पूरे मन से लगी रहीं। स्त्री अधिकारों, दलितों तथा आदिवासियों के हितों के लिए उन्होंने जूझते हुए व्यवस्था से संघर्ष किया तथा इनके लिए सुविधा तथा न्याय का रास्ता बनाती रहीं। 1996 में उन्हें ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। महाश्वेता जी ने कम उम्र में ही लेखन कार्य शुरू कर दिया था और विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं के लिए लघु कथाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
महाश्वेता देवी ने बांग्ला भाषा में बेहद संवेदनशील तथा वैचारिक लेखन द्वारा उपन्यास तथा कहानियों के साहित्य को समृद्धशाली बनाया। अपने लेखन कार्य के साथ-साथ महाश्वेता देवी ने समाज सेवा में भी सदैव सक्रियता से भाग लिया और इसमें पूरे मन से लगी रहीं। स्त्री अधिकारों, दलितों तथा आदिवासियों के हितों के लिए उन्होंने जूझते हुए व्यवस्था से संघर्ष किया तथा इनके लिए सुविधा तथा न्याय का रास्ता बनाती रहीं। 1996 में उन्हें ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। महाश्वेता जी ने कम उम्र में ही लेखन कार्य शुरू कर दिया था और विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं के लिए लघु कथाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
पुरस्कार व सम्मान
1977 में महाश्वेता देवी को ‘मेग्सेसे पुरस्कार’ प्रदान किया गया। 1979 में उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ मिला। 1996 में ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से वह सम्मानित की गईं। 1986 में ‘पद्मश्री’ तथा फिर 2006 में उन्हें ‘पद्मविभूषण’ सम्मान प्रदान किया गया।
महाश्वेता की एक प्रसिद्ध कविता पढ़िये
आ गए तुम,
द्वार खुला है अंदर आओ…!
पर तनिक ठहरो,
ड्योढ़ी पर पड़े पाएदान पर
अपना अहं झाड़ आना…!
मधुमालती लिपटी हुई है मुंडेर से,
अपनी नाराज़गी वहीं
उँडेल आना…!
तुलसी के क्यारे में,
मन की चटकन चढ़ा आना…!
अपनी व्यस्तताएँ,
बाहर खूँटी पर ही टाँग आना।
जूतों संग हर नकारात्मकता
उतार आना…!
बाहर किलोलते बच्चों से
थोड़ी शरारत माँग लाना…!
वो गुलाब के गमले में मुस्कान लगी है,
तोड़ कर पहन आना…!
लाओ अपनी उलझनें
मुझे थमा दो,
तुम्हारी थकान पर
मनुहारों का पंखा झुला दूँ…!
देखो शाम बिछाई है मैंने,
सूरज क्षितिज पर बाँधा है,
लाली छिड़की है नभ पर…!
प्रेम और विश्वास की मद्धम आँच पर
चाय चढ़ाई है,
घूँट घूँट पीना,
सुनो, इतना मुश्किल भी नहीं है जीना…!