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हिंदी साहित्य की बड़ी हस्ताक्षर थीं पद्मश्री डॉ.उषा किरण खान।

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लोक चेतना और लोकचिंता की प्रखर लेखिका पद्मश्री डॉ. उषाकिरण खान देशभर में हिंदी साहित्य की बड़ी हस्ताक्षरों में शामिल हैं। आज भले ही वो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी लेखनी उनके होने का एहसास हमेशा कराती रहेंगी। जब कभी भी अपनी रचनात्मक यात्रा को याद करती थीं, तो उनकी आंखें बरबस गिली हो जाती थीं। वो कहती थीं कि जब हमने लिखना शुरु किया था उस वक्त साहित्यिक माहौल था। उस समय स्वतंत्रा सेनानी, क्रांतिकारी भी रचनात्मक हुआ करते थे।

महान कवि बाबा नागार्जुन और डॉ. उषा किरण खान के पिताजी जगदीश चौधरी दोनों अभिन्न मित्र थे। इनकी मित्रता इतनी गहरी थी कि दोनों मित्रों को लोग आपस में भाई ही जानते थे। हलांकि इनदोनों मित्रों की मुलाकात आजादी की लड़ाई के दरम्यान जेल में हुई थी। इस बात का जिक्र करना इसलिए जरुरी हो जाता है क्यों कि डॉ.उषा किरण खान के जीवन में बाबा नागार्जुन का उन्हें सानिध्य मिला। बाबा हमेशा उषा को लिखने के लिए प्रेरित करते रहते थे। वैसे उषा को फणीश्वर नाथ रेणु जी की रचना ने काफी प्रभावित किया, जो कहानी लेखन में कालजयी प्रेरणा साबित हुईं। इतना ही नहीं बाबा नागार्जुन देश में जहां कहीं भी बड़े आयोजनों में जाते थे तो उषा को भी ले जाया करते थे, जिससे उषा किरण खान की लेखनी को भी धार मिली।

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उषा जी ने कहानी, उपन्यास लिखने के क्रम में अपने समकालीन लेखकों को पढ़ते-लिखते देखकर रचनाओं की रचना भी शुरु किया लेकिन इसमें उनकी खास रुचि नहीं हुई। डॉ.खान को फणीश्वरनाथ रेणु की मैला आंचल ने इतना प्रभावित किया कि आगे चलकर उनकी लेखनी पर उसका गहरा प्रभाव देखने को मिला।

लिखने पढ़ने का सिलसिला भले ही पहले से उषा जी का चल रहा था लेकिन वर्ष 1977 में पहली बार श्रीपत राय जी के पास उन्होंने अपनी रचना को प्रेषित किया और उनकी रचना ‘कहानी’ पत्रिका में प्रकाशित हो गई। इसके बाद उषा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और उनकी दूसरी रचना ‘धर्मयुग’ धर्मवीर भारती ने प्रकाशित कि साथ ही उनको काफी प्रोत्साहित भी किया, जिसका जिक्र वो अक्सर किया करती थीं।

कविता, कहानी, उपन्यास लिखने वाली डॉ.उषा मूलरुप से कथाकार के रुप में ही स्थापित हुईं। हिंदी रचनाओं में फागुन (1994), सीमांत कथा (2004), रतनारे नयन (2005), पानी पर लकीर (2008), सिरजनहार (2011), अगन हिंडोला (2015), गई झुलनी टूट (2017), गहरी नदिया नाव पुरानी (2022) और आशाः बारह खड़ी विधाता बांचे (2003) चर्चित उपन्यासों में शामिल हैं। जबकि दस प्रतिबिंब कहानियां, संकलित कहानियां, लोकप्रिय कहानियां, मौसम का दर्द चर्चित कहानियों में रहीं। वहीं कविता संग्रह में विवश विक्रमादित्य, दूबधान, गांली पांक, कासवान, जलधार, जनम अवधि, धर से धर तक और खेलत गेंद गिरे यमुना तथा बाल रचनाओं उड़ाकू जनमेजय (बाल उपन्यास हिंदी), डैडी बदल गए हैं (बाल नाटक, हिंदी), सातभाई चंदा हिंदी कहानियां प्रमुख रहीं। इनकी लेखनी ने इनको लेखनी जगत का बिहार ही नहीं देश का बड़ा हस्ताक्षरों में शामिल कर दिया।

-मुरली मनोहर श्रीवास्तव

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