रंजन कुमार
सासारामः लॉकडाउन में जिंदगी कितनी मुश्किल हो गई है, यह एक तस्वीर काफी है इसे बयां करने के लिए। सासाराम के 14 वर्षीय नंदिनी इन दिनों रिक्शा चला रही हैं। जो यह बताने के लिए सरकार द्वारा राहत के नाम पर जो आंकड़े दिखाए जा रहे हैं। वह किस हद तक झूठे और कागजी हैं।
लॉकडाउन में जब सब कुछ बंद हो चुका है। ऐसे में अपने परिवार के दो जून की रोटी के लिए बेटी रिक्शा लेकर सड़क पर निकल चुकी है। बता दें कि नंदिनी बौलिया की रहने वाली है। जो दूसरे के घरों में चूल्हा-चौका बर्तन मांजकर जीविका चलाती है। लेकिन महामारी के कारण लोंगों ने वह काम भी छुड़वा दिया, वहीं इसके पिता रिक्शा चलाते थे, लेकिन लॉकडाउन में पिता द्वारा रिक्शा चलाने पर पुलिस प्रशासन द्वारा मारपीट किए जाने के भय से नंदिनी के पापा कहीं और मजदूरी करने चले गए। तो बेटी रिक्शा लेकर सड़क पर निकल आई, ताकि कुछ पैसे का जुगाड़ हो जाए। लड़की जान के पुलिस परेशान नही करती।
पायदान तक भी नहीं पहुंचते पैर
नंदनी को रिक्शा चलाता देख गरीबों की बेबसी तथा लाचारी साफ दिखती है। रिक्शे के पायदान तब भी वह ठीक से नहीं पहुंच पाती। लेकिन गरीबी की मार है, कि उसे रिक्शा खींचने पर मजबूर होना पड़ा है। नंदनी कहती है कि कोरोना के कारण चूल्हा चौका का काम भी बंद है। ऐसे में अब रिक्शा ही सहारा बचा है। इसलिए वह सड़क पर रिक्शा लेकर निकल गई हैं।
कहां हैं योजनाएं
नंदिनी उदाहरण है कि सरकार की योजनाएं जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से आगे नहीं बढ़ सकी। रोजगार उपलब्ध कराने के दावे कितने सही हैं।
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