NEWSPR डेस्क। जिसकी आवाज सुनकर कभी नींद खुला करती थी, वो गौरैया आज विलुप्त होने के कगार पर है। वो आवाजें अब कहीं खो गई है। कहीं गुम हो गए हैं 15 सेंटीमीटर और 30 ग्राम वजन वाली गौरैया। चिड़िया से रिश्ते की लंबाई चिर कालीन थी। वही इस विलुप्त हो रही गौरैया चिड़िया को बचाने के लिए रोहतास जिले के अर्जुन सिंह लगातार वे 12 वर्षों से इन गौरैया की सेवा में लग गए हैं और आज इनके वजह से पूरे गांव में गौरैया की मीठी आवाज सुनने को अब मिलने लगी है। यहां तक कि इन्होंने एक मकान भी छोड़ दिया है सिर्फ चिड़िया के रहने के लिए जिसमें रोजाना वे जाकर चिड़िया के साथ खेलते हैं और उनका दाना पानी की व्यवस्था भी करते हैं।
अर्जुन सिंह रोहतास जिले के करगहर थाना क्षेत्र के मेडड़ीपुर के रहने वाले हैं जब इनके पिताजी की मौत हुई उसके कुछ दिन बाद इनकी पत्नी की भी मौत हो गई तो बहुत ही उदास रहने लगे एक दिन वह अपने घर के आंगन में खाना खा रहे थे तभी उन्होंने देखा कि एक चिड़िया घायल अवस्था में उनके आंगन में गिरी हुई है इसके बाद उन्होंने उस चिड़िया को मलहम पट्टी लगाकर कुछ दिनों तक सेवा की जिसके बाद में चिड़िया ठीक होकर उड़ गई उसके बाद इनका ध्यान गौरैया चिड़िया के तरफ पड़ा फिर वह धीरे-धीरे खाना अपने आंगन में देने लगे और गौरैया चिड़िया आकर इनके आंगन में खाना खाती जिससे इन्हें अच्छा लगने लगा और इनका गौरैया से धीरे-धीरे लगाव होते गया, इनका कहना है उस समय उदास मन को समझाने के लिए और अपने को व्यस्त करने के लिए इन चिड़िया के साथ रहकर अपने को व्यस्त रखने लगा इनका दाना पानी भोजन की व्यवस्था करने लगा और ईश्वर की दया से मेरा भी मन लग गया और इन गौरैया चिड़िया का पालन पोषण भी हम करने लगे देखते देखते हजारों की संख्या में गौरैया चिड़िया हमारे आंगन में चाहकने लगी तो हमने अपना एक किता मकान उन चिड़िया के नाम पर छोड़ दिया और उनके रहने की व्यवस्था खाने पीने की व्यवस्था उस मकान में कर दी आज मुझे काफी खुशी है कितनी बड़ी तादाद में गौरैया चिड़िया हमारे मकान में रह रही है और गांव में चहक रही है ।
कहा जाता है कि जहां गौरैया रहती है, वहां लक्ष्मी का वास होता है लेकिन गांवों का बदलता स्वरूप, शहरीकरण की बढ़ती प्रवृति, कृषि कार्य में रासायनिक उर्वरक व जहरीले कीटनाशकों के प्रयोग ने हमारे घर-आंगन में फुदकती गौरैया को लगभग समाप्ति के कगार पर पहुंचा दिया है हर घर की आंगन में पूरे दिन फुदकने वाली यह प्रजाति, घरों की छप्परों में अपना नीड़ बनाने वाली यह चिड़िया, नन्हें-मुन्नों के हाथों उनके जुठन खाने वाली राजकीय पक्षी गौरैया आज अधिकांश गांवों के लिए बीते जमाने की बात बन गई है ऐसे में जिले के करगहर प्रखंड के मेड़रीपुर निवासी अर्जुन सिंह ने गौरैया पुरुष बनकर मरुस्थल में एक शीतल जलस्त्रोत की तरह उम्मीद की किरण बिखेरी है।
लगभग 12 वर्षों से गौरैया को बचाने की जद्दोजहद में लगे अर्जुन के घर-आंगन में आज हजारों गौरैया की चहचहाहट गूंज रही है उनके इस समर्पण के लिए उन्हें स्पैरोमैन के नाम से लोग जानने लगे हैं रसायन शास्त्र से स्नातकोत्तर व बीएड तक की पढ़ाई कर चुके अर्जुन अपने घर गौरैयों को रहने के लिए घर की दीवारों में दरबा बनाया है दरवाजे पर झाड़ीदार वृक्ष लगा उनके बसरे की व्यवस्था कराया है जहां गौरेया अपना बसेरा डालने लगी पहले साल में जब इन्होंने गौरैया के संरक्षण की शुरुआत की थी इनकी संख्या 50 थी लेकिन अब एक दशक बाद इनके घर हजारों गौरैया भोजन-पानी ग्रहण कर चहक रही हें, बल्कि आसपास के गांवों में भी इनकी संख्या तेजी से बढ़ी है।
20मार्च 2021 को इनको गौरैया दिवस के अवसर पर वन एवं पर्यावरण मंत्री के हाथों से इनको अवार्ड भी मिला तो इनको काफी खुशी हुई और जी जान से सेवा की भावना से गौरैया सेवा करने लग गये।
2013 में गौरैया को राज्य सरकार ने राजकीय पक्षी घोषित किया तब गौरेया की संख्या अधिकांश भागों में नहीं के बराबर थी तब वन विभाग की एक टीम ने मेड़रीपुर पहुंच गौरैयों का आकलन किया उस समय लगभग आठ हजार गौराया होने का अनुमान लगाया गया आज स्थिति यह है कि अर्जुन के घर, आंगन व दरवाजे पर हजारों गौरैया उड़ान भर रही है प्रति वर्ष लगभग दस क्विटल धान व खुदी उन्हें अहार के रुप में दिया जाता है।
अर्जुन के इस प्रयास का नतीजा यह हुआ कि इस क्षेत्र से विलुप्त होने के कगार पर आ चुकी गौरैया की चहक दुबारा मेड़रीपुर के अलावे मथुरापुर, सेमरियां, कल्याणपुर, अनंतपुरा, खरपुरा, खरसान सहित कई गांवों के घर आंगन में सुनाई देने लगी है इन गांवों के लोग भी गौरैया के महत्व से वाकिफ हो उनके लिए झाड़ीदार वृक्ष लगा रहे हैं साथ ही घरों के छतों पर पानी व अनाज के दाने भी रख रहे हैं ।
2012 में तत्कालीन डीएफओ द्वारा उन्हें स्पैरोमैन के रूप में पुरस्कृत भी किया गया वहीं 2015 में राज्य सरकार द्वारा उन्हें वन्य प्राणी परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया कभी हर घर की सदस्य कहलाने वाली पक्षी गौरैया अब विलुप्त होने की स्थिति में है शहरों और गांवों में सुविधा भोगी समाज में अब गौरैयों के लिए कोई जगह नहीं बची है ऐसे में यह इंसान ने इन पक्षियों के संरक्षण की जिम्मेदारी बीते 12वर्षों से उठा रखी है ।