अजय कुमार मिश्रा, बाढ़
पटना: जिले का बाढ़ अनुमंडल, बिहार राज्य का सबसे पुराना अनुमंडल है। यह अनुमंडल कई मायने में ‘अजब’ भी है, और कई मायने में ‘गजब’ भी। ‘अजब’ इसलिए है कि नाम भले इसका ‘बाढ़’ है, लेकिन यहां ‘बाढ़’ कभी नहीं आता है। सरकार के लिस्ट में ‘बाढ़’ जिला नहीं है लेकिन सभी राजनैतिक दल ‘जिला बाढ़’ लिखते हैं और जिला अध्यक्ष का चयन भी करते हैं।
वहीं दूसरी ओर ‘गजब’ इसलिए है कि सूबे के सबसे पुराना अनुमंडल का मुख्यालय जन्म काल से ही शौचालय विहीन है। जबकि इस मुख्यालय में दर्जन भर कार्यालय होने की वजह से प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग यहां आते हैं। उनके लिए ना तो यहां कहीं पेयजल की सुविधा है, और ना ही सुलभ शौचालय की। लोग यूं ही जहां-तहां सड़क के किनारे बने नाले में पर्दे वाली काम को भी बेपर्दा होकर निपटाते नजर आते हैं। ऐसी हालात में सबसे अधिक परेशानी पंचायती राज में मिली आरक्षण के बल पर चयनित महिला जनप्रतिनिधियों और अन्य काम से यहां आए महिलाओं को उठाना पड़ता है। यहां जितने भी कार्यालय बने हुए सभी में अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए टाइल्स युक्त लैट्रिन, बाथरूम की व्यवस्था है लेकिन जिस जनता के बल पर ये कार्यालय चलते हैं, जिनके लिए कार्यालय बने हैं, उनको इसका कोई लाभ नहीं मिल पाता है। उन्हें सड़क किनारे ही अपनी समस्या निपटानी पड़ती है। इस तरह की अनिवार्य आवश्यकता पर न तो सरकार की नजर है और ना ही सरकार के नुमाइंदे की।
अब तक कई बार पैसे कमाने के उद्देश्य से शौचालय बनाए गए हैं लेकिन महीना भर भी सही ढंग से नहीं चल पाया है। कहीं पानी की किल्लत हो जाती है, तो कहीं रखरखाव की मुश्किल। इसके लिए अनुमंडल मुख्यालय में कोई मास्टर प्लान नहीं होता है। जिसके कारण महीने दो महीने में शौचालय भवन में तालाबंदी हो जाती है। लोग फिर जहां से चलना शुरू करते हैं, वहीं आकर अटक जाते हैं। जबकि सांसद-विधायक के साथ बड़े-बड़े अधिकारी पटना से समीक्षा बैठक के लिए हमेशा यहां आते रहते हैं लेकिन न तो वे खुद इस ओर कभी ध्यान देते हैं और न हीं कोई सरकारी नुमाइंदा इस जन-समस्या की ओर उनका ध्यान आकृष्ट करवाता है?